Monday, February 8, 2010

ले जाना है मुझे........!

समय का सामना
निष्ठा से हो
कुछ भी कठिन नहीं
चट्टान सी समस्या भी
दरकने लगती है.....।

उसके बीच से
राह खुद-ब-खुद
आमंत्रण दे रही होती हैं....
देखो.....
मैं राह हूं
आओ ..!
ले जाना है मुझे.....!

वहां
जहां
मंजिल के पार
और भी बहुत कुछ है
क्योंकि जानता हूं मैं
मंजिल तो बस ...
एक पड़ाव है
और
इसके सिवा कुछ भी नहीं.....!

Wednesday, February 3, 2010

उस व्यक्ति के लिये ....

उस व्यक्ति के लिये जिसका कोई स्थानापन्न नहीं मेरे जीवन में ---

आदर्श चुक जाता है वहाँ, विचार झनझनाने लगते हैं । चिन्तना कुछ मुखरित हो अपने सम्पूर्ण स्वरूप में संकलित होने लगती है । दृष्टि उलझने लगती है - कुछ अनचीन्हें, कुछ अनजाने या फिर अन्तर्निहित तत्वों से । दिखायी देता है कभीं यथार्थ तो कभी स्वप्न तो कहीं-कभीं जीवन दर्शन भी । विकसित होते है पत्र कुछ स्नेह के तो आक्रोश भी बड़ा सजग खिलने की चेष्टा में रहता है उत्सुक । फिर भी दिखायी दे जाती है चिन्तारहित मुस्कान , मुस्कान ही नहीं हँसी जो है निश्चिंतता का विश्वास । 

मनुष्यता का वरदान यदि कुछ है तो क्या ? जीवन ! केवल जीवन । जीवन का आधार क्या - सरसता । सरसता के लिये आवश्यक है भाव, स्नेह, और प्रेम । 

वहाँ भाव की प्रवणता है, उसका पारखीपन नहीं । वहाँ स्नेह की शीतलता है परन्तु अतृप्त व्यामोह के साथ । वहाँ प्रेम भी है पर उसका विस्तार नहीं , वह केवल एक संज्ञान है । मनुष्यता तो हावी है उनपर, मगर कुछ भटकती, बिलखती और खोजती अपना ही स्थान । वहाँ जीवन की सरसता भी देखी है मैंने - संवेदी, शंकित, अवगुंठित । 

इनके कुछ होने और इनके कुछ कर देने में अन्तर है । इनका कुछ होना इनकी दृष्टि में कुछ भी नहीं । हाँ, इनका कुछ कर देना एक विशिष्ट अर्थ रखता है । इन्होंने अपने व्यक्तित्व की ऊर्जा भी शायद अपने कार्यों में लगा दी । चतुर हैं, जानते हैं कि व्यक्ति के कार्य उसके व्यक्तित्व के निर्धारक हैं । शायद इसीलिये महत्व कुछ कर देने का है इनके लिये, होने का नहीं ।

उनके लिये कार्य का  महत्व है , महत्व का कार्य नहीं । कौन खाली है जो महत्व के कार्य की खोजबीन में समय गँवाए । किसने सोची हैं परिस्थितियाँ जो महत्व के कार्यों का निर्धारण कर सकें । इनके कार्य का महत्व है । कार्य पहले महत्व बाद में । पहला व्यक्तित्व है जिसने शरीर को आत्मा के बिना गतिशील रखा है ।