tag:blogger.com,1999:blog-36819485259007290092024-03-19T14:22:41.111+05:30कलरवहेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.comBlogger84125tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-13660377357077681212010-09-26T20:54:00.000+05:302010-09-26T20:54:30.410+05:30धर्मव्रता<div style="text-align: justify;"><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="float: left; margin-right: 1em; text-align: left;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><img border="0" height="320" src="http://www.sagarworld.com/krishnaworld/characters/images/gandhari.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;" width="216" /></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">Gandhari : Image from Google</td></tr>
</tbody></table>महाभारत का युद्ध आरंभ होने से पूर्व दुर्योधन का मन आशंकित होने लगा । पांडवों की सेना,उनके परमवीर, उनका साहस देखकर दुर्योधन को अपनी विजय में शंका होने लगी । वह बहुत ही चिन्तित हो गया । उसके सभी साथियों और भाईयों ने उसे समझाने का प्रयत्न किया , लेकिन उसका मन किसी केभी आश्वासन सुनने और मानने के लिये तैयार नहीं था ।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">अन्त में द्रोणाचार्य ने उसे सलाह दी कि उसकी माता गान्धारी परमव्रता हैं,वह अपने बेटे का अहित कभी सोच ही नहीं सकती । अत: यदि वह अपने पुत्र को अजेय होने का आशीर्वाद दे सकें तो फिर चिन्ता की कोई बात नहीं रह जाती है । ऐसा कोई भी कारण नहीं है कि माता गान्धारी ऐसा आशीर्वाद नहीं देंगी ।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">दुर्योधन को यह सुझाव उचित लगा । उसे निश्चय हो गया कि माता गान्धारी का आशीर्वाद पाकर वह अजेय हो जायेगा और फिर पांडव उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेंगे । यह सोचकर वह अपनी माता गान्धारी के पास गया । उसने कहा. ”माँ, मैं युद्ध के लिये प्रस्थान करना चाहता हूं, प्रस्थान से पूर्व तुम्हारा आशीर्वाद चाहिये । माँ, मुझे आशीर्वाद दो कि मैं अजेय रहूं,मुझे कोई भी पराजित न कर सके । तुम्हारा आशीर्वाद पाकर मैं शत्रुओं को पराजित कर सकूंगा ।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">माता गान्धारी ने कहा , “दुर्योधन , तू भूलता है । अजेय होने का आशीर्वाद मैं तुझे नहीं दे सकती।</div><div style="text-align: justify;">दुर्योधन चौंक कर बोला,:ऐसा क्यों माँ ?”</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">“इसलिये कि ऐसा आशीर्वाद केवल उसी व्यक्ति को दिया जा सकता है जो धर्माचरण करता हुआ सत्य पर टिका हुआ है । तुमतो धर्म और सत्य से बहुत ही दूर हो।“ </div><div style="text-align: justify;">दुर्योधन विचलित होकर कहने लगा,”पर माँ मै तुम्हारा बेटा हूँ।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">“इस सत्य से मैं कहाँ मुकरती हूँ , लेकिन मात्र पुत्र होने से ही मेरे सत्य और धर्म का अधिकारी तू तो नही हो जाता । यदि यह आशीर्वाद मैं तुझे दे दूँ तो मैं अधर्मी और असत्यमार्गिनी कहलाऊँगी । अजेय होने का आशीर्वाद मैं केवल उसी को दे सकती हूँ जो सत्य और धर्म के मार्ग पर चलता है और उसका एकमात्र अधिकारी युधिष्ठिर ही है ।“</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">माँ की बात को सुनकर दुर्योधन बहुत ही निराश हो गया । अति दुखी होकर उसने कहा,” तो माँ, मेरे लिये तुम कोई उपाय नहीं करोगी ?”</div><div style="text-align: justify;">“उपाय तो युधिष्ठिर ही बतायेंगे । तुम उनके पास जाओ ।“</div><div style="text-align: justify;">“पर वे तुम्हारे शत्रु हैं ।“</div><div style="text-align: justify;">“तुम्हारी आँखें उन्हें शत्रु ही देखेंगी , किन्तु वे एक धर्म-परायण व्यक्ति हैं । विजय का उपाय तुम्हें अवश्य ही बतायेंगे । जाओ उनके पास ।“</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">विचारों में खोया-खोया दुर्योधन मन-ही-मन माँ की बात ध्यान में लेकर युधिष्ठिर के पास पहुँचा ।और अपने आने का अभिप्राय कह सुनाया ।</div><div style="text-align: justify;">युधिष्ठिर कहने लगे, "यह तो बहुत ही आश्चर्य की बात है कि माँ गान्धारी ने तुम्हें मीरे पास भेज दिया है । वे मुझे धर्म परायण समझती हैं लेकिन इस समय पृथ्वी पर उनसे बड़ा धार्मिक व्यक्ति कोई है ही नहीं ।"</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">युधिष्ठिर के मुह से यह सुनकर दुर्योधन को अच्छा तो लगा लेकिन उसे पता था कि माता गान्धारी आशीर्वाद नहीं देंगी । उसने युधिष्ठिर से पूछा, "क्या सचमुच भैया इसमे संदेह और शंका के लिये तो बिल्कुल भी स्थान नहीं है, पर भैया मुझे स्पष्ट समझाओ कि धर्म और सत्य के विषय में बड़ा कौन है – आप अथवा माता गान्धारी </div><div style="text-align: justify;">"निश्चय ही माता गान्धारी । मैने कहा कि इस समय संसार भर में सबसे अधिक सत्यमार्गी होने का पुण्य और सौभाग्य माता गान्धारी कि ही प्राप्त है ।"</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">"इसका क्या प्रमाण है ?"</div><div style="text-align: justify;">"इसका सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि आज तक किसी नारी ने अपने पति के अवगुण को आत्मसात नहीं किया है जबकि माता गान्धारी विश्व की पहली स्त्री हैं जो पति के अन्धे होने के कारण स्वयं भी आँखॊं पर उसी दिन से पट्टी बाँधकर जी रही हैं जिस दिन से उनका विवाह हुआ । पति के अन्धेपन का दुख भोगे और पत्नी आँखॊं का सुख भोगे इस विषमता को दूर करने के लिये ही उन्होँने विवाह के प्रथम दिन से ही आँखॊं पर पट्टी बाँध ली थी । बताओ आजतक किसी स्त्री ने धर्म सत्य और पतिव्रत धर्म के मार्ग पर इतना बड़ा बलिदान किया है."</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">"पर भैया माता ने तो मुझे तुम्हारे पास ही भेजा है ।"</div><div style="text-align: justify;">"यह उनकी महानता है कि वे अपने कॊ इतना बड़ा सत्यमार्गी नहीं समझती । लेकिन मैं तुम्हें उपाय बता रहा हूँ । तुम माता के सामने सर्वथा नंगे होकर चले जाओ और उनसे निवेदन करो किवे एअ बार आंखॊं से पट्टी हटा कर तुम्हारे सारे शरीर को देख लें और उसपर पूर्ण दृष्टिपात कर दें । ऐसा होने पर तुम्हारा सारा शरीर ही वज्र का हो जायेगा । फिर उसे कोई भी छेद अथवा भेद नहीं सकेगा ।"</div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">"माता गांधारी का पुण्य और उनकी दृष्टि की दिव्यता, जो पति की भक्ति में रहने के कारण प्राप्त हुई है . तुम उनके पास जाकर दृष्टिपात करने के लिए निवेदन करो ."</div><div style="text-align: justify;">दुर्योधन अपनी माता के पास जाकर बोला, "माँ भैया ने कहा है कि तुम अपनी आँखों की पट्टी खोलकर एक बार पूर्ण रूप से मेरे सारे शरीर पर दृष्टिपातकर दो ." </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">गांधारी ने दुर्योधन की बात को स्वीकार कर लिया . दुर्योधन माता के सामने सर्वथा नंगा होकर नहीं आ सका. लाज के कारण उसने लंगोट पहन ली थी. सामने आने पर माता गांधारी ने अपनी आँखों की पट्टी खोल दी और दुर्योधन के पूरे शरीर पर दृष्टिपातकिया. लेकिन लंगोट वाला हिस्सा तो ढँका हुआ होने के कारण कच्चा ही रह गया, शेष सारा अंग लोहे जैसा वज्र हो गया.</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">महाभारत युद्ध के अंत में दुर्योधन और भीम में गदा युद्ध हुआ. इस युद्ध में भीम गदा मारते मारते थक गया था, लेकिन दुर्योधन को नहीं मार सका. कृष्ण जानते थे कि लंगोट वाला अंग कच्चा रह गया है. अतः उन्होने भीम को संकेत किया, तभी दुर्योधन मारा जा सका था .</div><div style="text-align: justify;">____________________________________________________</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #990000;">यह कथा <u>किताबघर </u>से प्रकाशित<u> श्री ब्रजभूषण</u> की पुस्तक <u>नारी गुणों की गाथायें</u> से ज्यों की त्यों प्रस्तुत कर रहा हूं । पुस्तक की कुछ अन्य कथाओं से नारी के अनिवार्य गुणों से हम परिचित हो सकेंगे । किताबघर और श्री ब्रजभूषण से बिना अनुमति के लिख रहा हूं, क्षमा प्रार्थी हूं इसके लिए । साभार । </span></div><div style="text-align: justify;">____________________________________________________</div>हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-85724790038870955122010-09-17T17:39:00.000+05:302010-09-17T17:39:32.799+05:30बाबा सारंगी वाले<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://www.corbisimages.com/images/67/FE704F48-3287-462F-B69E-6128B02F6D76/HR004090.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="320" src="http://www.corbisimages.com/images/67/FE704F48-3287-462F-B69E-6128B02F6D76/HR004090.jpg" width="212" /></a></div>अब नहीं आते बाबा<br />
सारंगी वाले<br />
बचपन में<br />
दादी<br />
दिया करती थी<br />
भर पेट भोजन<br />
और<br />
साथ में ढेर सारा दान<br />
प्रसन्न हो<br />
बाबा सुनाते थे --<br />
बदले में<br />
कई निर्गुण..!<br />
हम सब बच्चों की टोली<br />
जमा हो जाती थी उनके आस-पास<br />
हम सभी<br />
बस इतना ही जानते थे<br />
बाबा हैं तो<br />
राम धुन ही गायेंगे....!<br />
<br />
अब न दादी रहीं, न दादी का दान, <br />
समय की करवट ने<br />
छीन लिया बाबा, निर्गुण, रामधुन को । <br />
<br />
तो<br />
अब नहीं आते <br />
बाबा सारंगी वाले....!हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-11677021308401842302010-04-05T13:37:00.001+05:302010-04-05T13:39:42.609+05:30कहीं यह पलायन तो नहीं...!<a href="http://fineartamerica.com/images-small/abstract-138-angelina-cornidez.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"></a><a href="http://fineartamerica.com/images-small/abstract-138-angelina-cornidez.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="200" src="http://fineartamerica.com/images-small/abstract-138-angelina-cornidez.jpg" width="157" /></a><br />
<br />
<br />
<br />
<br />
प्रत्याशित सफलता का न होना<br />
नीयति पर ठीकरा कसना क्यों हो...? <br />
कहीं यह पलायन तो नहीं...!<br />
इसकी समीक्षा<br />
ठंडे बस्ते में डाल देती है<br />
गर्म लोहे के ताप को<br />
असफलता से प्राप्त<br />
आग की ज्वाला<br />
यदि सच्ची है<br />
फिर<br />
तपा कर स्वयं को<br />
कुन्दन न बना देगी....!हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-60282380178073272142010-03-10T12:15:00.001+05:302010-03-10T12:50:19.274+05:30ख्वाब से हकीकत की यात्रा में<img alt="http://i.ehow.com/images/a05/1v/tn/go-green-camping-ecofriendly-tips-120X120.jpg" src="http://i.ehow.com/images/a05/1v/tn/go-green-camping-ecofriendly-tips-120X120.jpg" /> <br />
ख्वाब से हकीकत की यात्रा में<br />
अनेक पड़ाव हैं...<br />
<br />
आत्मबोध<br />
जहां<br />
तय होता है<br />
भविष्य यात्रा का ...!<br />
<br />
नकारात्मकता<br />
जिससे लड़ना है<br />
यदि बढ़ना है<br />
आगे....!<br />
<br />
कुछ दूर और चलने पर<br />
मिलेगा....<br />
सकारात्मक भाव<br />
बढ़ेगा हौसला<br />
और<br />
<br />
हो सकोगे यथार्थोन्मुख....।हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-24558192285137136002010-02-08T16:50:00.000+05:302010-02-08T16:50:55.903+05:30ले जाना है मुझे........!समय का सामना<br />
निष्ठा से हो<br />
कुछ भी कठिन नहीं<br />
चट्टान सी समस्या भी<br />
दरकने लगती है.....।<br />
<br />
उसके बीच से<br />
राह खुद-ब-खुद<br />
आमंत्रण दे रही होती हैं....<br />
देखो.....<br />
मैं राह हूं<br />
आओ ..!<br />
ले जाना है मुझे.....!<br />
<br />
वहां<br />
जहां<br />
मंजिल के पार<br />
और भी बहुत कुछ है<br />
क्योंकि जानता हूं मैं<br />
मंजिल तो बस ...<br />
एक पड़ाव है<br />
और<br />
इसके सिवा कुछ भी नहीं.....!हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-75505592654835799342010-02-03T14:27:00.000+05:302010-02-03T14:27:40.724+05:30उस व्यक्ति के लिये ....<div style="text-align: justify;"><span style="color: #990000; font-size: x-small;">उस व्यक्ति के लिये जिसका कोई स्थानापन्न नहीं मेरे जीवन में ---</span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><a href="http://thinking4changenow.com/images/thinking_man.png" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="http://thinking4changenow.com/images/thinking_man.png" width="160" /></a></div><div style="text-align: justify;">आदर्श चुक जाता है वहाँ, विचार झनझनाने लगते हैं । चिन्तना कुछ मुखरित हो अपने सम्पूर्ण स्वरूप में संकलित होने लगती है । दृष्टि उलझने लगती है - कुछ अनचीन्हें, कुछ अनजाने या फिर अन्तर्निहित तत्वों से । दिखायी देता है कभीं यथार्थ तो कभी स्वप्न तो कहीं-कभीं जीवन दर्शन भी । विकसित होते है पत्र कुछ स्नेह के तो आक्रोश भी बड़ा सजग खिलने की चेष्टा में रहता है उत्सुक । फिर भी दिखायी दे जाती है चिन्तारहित मुस्कान , मुस्कान ही नहीं हँसी जो है निश्चिंतता का विश्वास । </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">मनुष्यता का वरदान यदि कुछ है तो क्या ? जीवन ! केवल जीवन । जीवन का आधार क्या - सरसता । सरसता के लिये आवश्यक है भाव, स्नेह, और प्रेम । </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">वहाँ भाव की प्रवणता है, उसका पारखीपन नहीं । वहाँ स्नेह की शीतलता है परन्तु अतृप्त व्यामोह के साथ । वहाँ प्रेम भी है पर उसका विस्तार नहीं , वह केवल एक संज्ञान है । मनुष्यता तो हावी है उनपर, मगर कुछ भटकती, बिलखती और खोजती अपना ही स्थान । वहाँ जीवन की सरसता भी देखी है मैंने - संवेदी, शंकित, अवगुंठित । </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">इनके कुछ होने और इनके कुछ कर देने में अन्तर है । इनका कुछ होना इनकी दृष्टि में कुछ भी नहीं । हाँ, इनका कुछ कर देना एक विशिष्ट अर्थ रखता है । इन्होंने अपने व्यक्तित्व की ऊर्जा भी शायद अपने कार्यों में लगा दी । चतुर हैं, जानते हैं कि व्यक्ति के कार्य उसके व्यक्तित्व के निर्धारक हैं । शायद इसीलिये महत्व कुछ कर देने का है इनके लिये, होने का नहीं ।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">उनके लिये कार्य का महत्व है , महत्व का कार्य नहीं । कौन खाली है जो महत्व के कार्य की खोजबीन में समय गँवाए । किसने सोची हैं परिस्थितियाँ जो महत्व के कार्यों का निर्धारण कर सकें । इनके कार्य का महत्व है । कार्य पहले महत्व बाद में । पहला व्यक्तित्व है जिसने शरीर को आत्मा के बिना गतिशील रखा है । </div>हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-74749716704179302312010-01-30T08:27:00.001+05:302010-01-30T08:29:09.097+05:30तरलता से ही जुड़ते तुम..<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjlDVvnBKq49-lUR8-z1T4EgHPhZP7YLbtKLtkNP_Tt2klbJH1GiSuCBKj_JMs_1nj6HdqFKicUPzBrnvnFcKChWZBIX-lSpYurzUAYwQPqgMmtcUE7nnHu9o7UniEK0zVMZ9IZJDCvoXEm/s1600-h/tanha.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="164" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjlDVvnBKq49-lUR8-z1T4EgHPhZP7YLbtKLtkNP_Tt2klbJH1GiSuCBKj_JMs_1nj6HdqFKicUPzBrnvnFcKChWZBIX-lSpYurzUAYwQPqgMmtcUE7nnHu9o7UniEK0zVMZ9IZJDCvoXEm/s320/tanha.jpg" width="164" /></a></div>तुम नहीं हो<br />
यह अनुभव <br />
नयन सजल कर देता है,<br />
तुम्हारा होना भी<br />
आँखे भर देता है ।<br />
<br />
तरलता से ही जुड़ते तुम<br />
हर कहीं, कभीं भी ।हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-83464583469473789962010-01-26T17:30:00.000+05:302010-01-26T17:30:06.480+05:30समय व असमय की सार्थकता......<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh9q1jd-hC3nPBWaBhL_s7MUzEgVs295jSNF3K99WJLfRXIK1s-QoU6RNVnIxbEbRuK7n-Qo_2Q3d6715Jd4BD8USxloRzY0qUQMbZpq0yZ_2dZdp2RIYBBzFDaVqNqpYQHzFC9jRUvxgJ5/s1600-h/past.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh9q1jd-hC3nPBWaBhL_s7MUzEgVs295jSNF3K99WJLfRXIK1s-QoU6RNVnIxbEbRuK7n-Qo_2Q3d6715Jd4BD8USxloRzY0qUQMbZpq0yZ_2dZdp2RIYBBzFDaVqNqpYQHzFC9jRUvxgJ5/s320/past.jpg" width="214" /></a><br />
</div>समय व असमय की सार्थकता <br />
द्वन्दात्मक रूप में<br />
क्षण-प्रतिक्षण<br />
उकेरना आरंभ कर देते हैं<br />
हर रंग को <br />
बारी-बारी से<br />
अतीत की घटी घटनाओं में<br />
ठीक वैसे ही<br />
जैसे<br />
कोई व्याख्याता<br />
प्रस्तुत कर रहा हो..<br />
शोधपरक पत्र.....!<br />
<br />
सरकते हुए विगत में<br />
दर्ज होना कौन नहीं चाहेगा<br />
परिस्थितिजन्य भटकाव<br />
नियति पर <br />
अनगिन आरोप थोप जाते हैं ...<br />
<br />
और<br />
रह जाता है अधूरा सा इतिहास....?हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-69629076911823637222010-01-02T06:19:00.001+05:302010-01-25T17:44:42.186+05:30सायास ही किसी का रुदन नहीं होता......सायास ही किसी का रुदन नहीं होता , वेदना जब असीम हो जाय सब कुछ धरा का धरा रह जाता है चाहे वह कोई खुशी हो , त्यौहार हो या नव वर्ष ...! कल एक ओर सारे लोग नूतन वर्षाभिनन्दन में मग्न थे और पास में ही पड़ोसन का बेटा गुम हो गया । माहौल अफरातफरी का हो गया । बधाईयों और अभिनन्दन के दौर में ऐसा हो जाना बहुत ही कष्टकारी होता है । एक तो उसका पिता घर से बाहर सुदूर रहता है । घर में उसे व उसकी मां को लेकर छोटी बहन कुल तीन की संख्या थी । पुत्र का इस तरह से गुम होना किसी पहाड़ के टूट के गिरने से कम न था ।<br />
<br />
मां के लिए पति की अनुपस्थिति में बेटा ही आधिकारिक संबल होता है । घर का खर्चा किसी तरह से सिलाई - बुनाई, फाल- पीको आदि से चलाना इस इक्कीसवीं सदी की दुनिया में आसान नहीं । उसकी मां को किसी प्रकार से विश्वास दिलाने की कोशिश कब से की जा रही थी कि धीरज रखिये कुछ लोग उसे ढूढने में लगे हैं । मुहल्ले में किये गये सद व्यवहार की परख ऐसे ही समय में होती है जब व्यक्ति विपरीत परिस्थिति से गुजर रहा होता है ।<br />
<br />
ऐसी घटनायें अनायास ही मन में चिढ़्चिढ़ापन ला देती हैं कि हे भगवान... ! आखिर में मैने आपका क्या बिगाड़ा था कि विपत्तियों का सामना हमें ही करना हो रहा है । सचमुच आस्तिकता को धक्का लगना स्वाभाविक है ....परिस्थितियां जब विपरीत होती हैं ..विवेक स्वभावत: काम करना बन्द कर देता है । उसके सामने हंसी - खुशी की बात ... उसे मजाक उड़ाने जैसी प्रतीत होती है ।<br />
<br />
दूसरों के दिये जा रहे आश्वासन से किसी भी मां के कलेजे को राहत नहीं मिलती । उसे तो बस उसका लाल चाहिये । मां के जीवन का उत्साह बच्चों के लालन - पालन में ही होता है । नियति जब इससे भी उसे वंचित कर दे .....सच में....! उसका सर्वस्व बिखरता हुआ दिखना कहीं से कमतर नहीं । सामाजिक सरोकार सिवाय सहयोग के हृदयाघात को मिटा सका है भला........?<br />
<br />
शाम होते- होते वह बालक अपने मित्र व उसके माता - पिता के साथ घर आया । अब क्या था......? गले से लगा रो पड़ी वह...। छोटा सा बालक सूचना का हाल तो जानता ही न था कि घर बताना या न बताना जैसी भी कोई बात होती है .....! उसे तो बस छुट्टी में मौज करना था । मां के लिये पल भर भी बालक ओझल हो जाय, कितना मुश्किल होता है खुद को संभालना । यहां .......सुबह से शाम हो चली थी .........!हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-13888494412511068532010-01-01T15:29:00.001+05:302010-01-01T15:46:14.855+05:30अरे ! नया साल, नया साल.....पड़ोस के बच्चे ने अपने साथी से कहा--<br />
"नया साल तुम्हें मुबारक हो"<br />
साथी ने कहा -<br />
अरे !<br />
साल तुमने दिया ही नहीं<br />
यह क्या कह रहे हो ...?<br />
अरे ! नया साल, नया साल<br />
<br />
मेरी मां<br />
जब कहती है-<br />
अरे बाबा !<br />
किताब मुबारक हो<br />
वह हमें किताब जरूर देती है<br />
तुमने हमें साल कब दिया.......?<br />
जो कह रहे हो -<br />
"नया साल तुम्हें मुबारक हो"<br />
<div style="text-align: justify;"><br />
</div>हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-50003755507304644782009-12-31T07:44:00.000+05:302009-12-31T07:44:42.656+05:30मर्म की टोकरी भरने को है......<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjo-JP4Fq4ZhjjGBPpSPVn8OqgdHB77cP6alEBJ25LCf7Jjs74_vtssgVlMutUJASadcYWEhlT2Jb-ZLLi3L_SU1aZ4gn3tjmtF0fzjkepVMu9l0bHaqgPH-u15NW4lXqkvPn48XIcuvaAz/s1600-h/f.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjo-JP4Fq4ZhjjGBPpSPVn8OqgdHB77cP6alEBJ25LCf7Jjs74_vtssgVlMutUJASadcYWEhlT2Jb-ZLLi3L_SU1aZ4gn3tjmtF0fzjkepVMu9l0bHaqgPH-u15NW4lXqkvPn48XIcuvaAz/s200/f.jpg" /></a><br />
मर्म की टोकरी भरने को है<br />
चलायमान सुधियों में<br />
जिसने देखा<br />
कदम से कदम मिलाते <br />
हर क्षण को<br />
चक्रारैव पंक्ति में<br />
जहां<br />
स्थान तलाशती<br />
नित अभिनव होने को<br />
अनगिन खुशियां....। <br />
<br />
हां तुम हो पास ही<br />
पर<br />
तीसरा नेत्र कहां <br />
वंचित हूं न......!हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-17131397355442715162009-11-22T08:51:00.000+05:302009-11-22T08:51:41.210+05:30जब जब उठने का अवसर मिलाजब जब उठने का अवसर मिला<br />
धड़ाम से गिरा दिया जाता हूँ मैं<br />
कभी प्रकृति<br />
कभी नियति<br />
कभी किसी बड़ी बीमारी का<br />
आकस्मिक अटैक<br />
कि झट से उबर भी न सको<br />
<br />
असर पड़त्ता है मनोदशा पर<br />
रुटीन इकोनोमी पर<br />
अपनों पर<br />
जुड़े शुभेक्षुओं पर ।<br />
सुबह से शाम तक सरकती<br />
जिन्दगी<br />
रात को आराम ले<br />
फिर आ खड़ी होती है कमर कसके <br />
हर क्षणका सामना डट के करने को<br />
<br />
इस चल रही निरन्तर प्रक्रिया में<br />
शरीर के साथ ही मनोदशा की भी<br />
जम के परीक्षा हो जाती है <br />
आखिर कब तक लगातार<br />
परीक्षा में पास होता रहेगा<br />
शरीर, फिर मनोदशा<br />
<br />
चुकना भि तो है नियति<br />
सो स्वभावतः<br />
बीमारी का निशाना बन पड़ा<br />
अब तक जो भी पाने में<br />
बिना खयाल किये <br />
खटाया था<br />
चलो अब जुर्माना दो<br />
<br />
जब प्रकृति संतुलन पर आधारित है<br />
देह-धर्म कैसे अलग हो सकता है भला .... ।हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-65134542343862039182009-11-11T04:40:00.000+05:302009-11-11T04:40:37.544+05:30कितना उचित है....?अपने ही देश में <br />
राष्ट्र-भाषा की अवहेलना<br />
करने को आतुर होना <br />
कितना उचित है....?<br />
<br />
यह ठीक है <br />
हर प्रान्त की अपनी<br />
आंचलिक भाषा हो<br />
बात समझ में आती है<br />
पर<br />
काम-काज में<br />
हिन्दी अपनाने से भागना <br />
कहीं से उचित है भला...।<br />
<br />
हिन्दी की स्थापना से आशय<br />
यह कदापि नहीं कि<br />
आपकी आंचलिक भाषा को<br />
उपेक्षित किया जा रहा है....।<br />
<br />
बार-बार अपने होने का बिगुल फूकना<br />
बुद्धिमत्ता का परिचायक कहां से है..<br />
राष्ट्र-भाषा की सशक्त उपस्थिति को<br />
कैसे खण्डित कर सकता है कोई.....?<br />
<br />
ऐसा करना<br />
अपने आपको<br />
टुकड़ों में बांटने जैसा है.....।हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-15903599588569842132009-11-07T08:50:00.000+05:302009-11-07T08:50:05.304+05:30चली जा रही थी वह ....<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh1ZuaJmORg-u0Tn30-UNtNW6QbL4P6tmbT-LvIcxP2QeHDypBpx5Y6ZPtJvPKfifaLeZWnKhrgouJ6dANsSJNXGJ3hccie4UXNTMLb2WYoJOGXch8cxi-lZHcHDWkK-OhFJHoZWAnJSSSa/s1600-h/doli.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh1ZuaJmORg-u0Tn30-UNtNW6QbL4P6tmbT-LvIcxP2QeHDypBpx5Y6ZPtJvPKfifaLeZWnKhrgouJ6dANsSJNXGJ3hccie4UXNTMLb2WYoJOGXch8cxi-lZHcHDWkK-OhFJHoZWAnJSSSa/s320/doli.jpg" /></a><br />
</div>चली जा रही थी वह .....!अपनी यादों को झोली में डाल ....। डोली में बैठ ....। छूटा जा रहा था..। बाबुल का घर...। मानो पीछे छूटता हुआ...., नैहर और घनीभूत हो हृदयंगम हो उठा हो । अश्रुधारा अपने कोमल अहसासों को बार-बार समेटे गालों से नीचे तक धार बना बह रही थी । सामने डोली में बैठा सजन भला उसे संभाल सकता था भला , शायद नहीं । चाह कर भी वह विदा करा कर घर ले जा रही ब्याहता को चुप कराने में असमर्थ सा हो रहा था । कहांरो के कदम आगे बढ़ रहे थे और उसका मन अपने बचपन की दुनियां की ओर लौट रहा था..। खो सी गयी वह....।<br />
<br />
चार सखियों समेत उसे लेकर कुल पांच की टोली । जिसके लिये कोई काम असंभव नहीं । बचपन से किशोरावस्था के बीच किसी भी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम थी हमारी टोली ।किशोरी होने तक पाबंदियां जो नहीं थी ।सखियों के साथ गंगा जी के किनारे नहाने आते- जाते पुरुष और महिलाओं पर फिकरे कसना ,ठहाके लगाना, मौज-मस्ती करना, स्कूल में मास्टर जी की बातों को हवा में उड़ा देना । घर आकर अपनी कोठरी में जा रजाई तान के सो जाना ,सुबह देरी से उठने के लिये मां से डांट सुनना, बाबू जी के माथे पर अपने बडे़ होते देख चिन्ता की लकीरें । क्या यह सब भुलाया जा सकता है ...? चारों सखियां पहले ही ससुराल जा चुकी थीं । उनके मां - बाप बहुत पैसे वाले जो ठहरे ।<br />
<br />
अजीब है समाज का ढांचा । जहां दहेज ने नस-नस में अपना पैसार कर रखा है ।जिस बाप को भगवान बेटी दें उसे धन भी पर्याप्त दें । बिना धन के बेटियां असमय ब्याह दी जाती हैं । चाहे समय से पहले या बाद में । उनके सारे अरमानों पर पानी फिर जाता है । समाज में कितने उलाहनों को सहना होता है उन्हें । हर शोहदों की बुरी दृष्टि से बचना होता है । अपनी अस्मिता व पिता की मर्यादा दोनों के लिये । मेरे बाबू जी पहले ही तीन बेटियों व एक बेटे की शादी करने में अपना सब कुछ दांव पर लगा चुके थे । स्वाभाविक था कि मेरी शादी में बाबू जी से विलम्ब हो । हां ! पिता जी भैया की शादी में दहेज मांगे ही न थे । पर दहेज न मांगने से दहेज न देने की स्थिति का निर्माण नहीं हो जाता । शादी में हम दहेज न लें पर हम किसे मनायेंगे कि आप भी दहेज न लो । बिटिया की शादी करनी है तो दहेज देना ही होगा ।<br />
<br />
कितना अजीब होता है नारी का जीवन ? कहीं भी से आस्वस्त भाव नहीं प्राप्त नहीं होता । बचपन में मां - बाप की सेवा ,विवाहोपरान्त पति के अधीन समर्पण भाव ,फिर सन्तान की सेवा । जहां देखो त्याग ही त्याग ...। शायद इसी लिये सहनशक्ति का भाव यूं ही विकसित हो जाता है । सहते- सहते वह इतनी परिपक्व हो जाती हैं कि प्रसव पीड़ा के लिये भी गुजरने को तैयार हो जाती हैं । मर्दों को यदि ऐसी स्थिति से गुजरना शायद इनके बस की बात नहीं ।<br />
<br />
ध्यान भंग होते ही देखती है ससुराल आ गया है अब तो डोली से बाहर नयी दुनियां में निकलने का वक्त है......।हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-36741475707135575792009-11-04T08:16:00.000+05:302009-11-04T08:16:19.065+05:30कहीं यह मेरे पैरों से.....<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEigcd0B1Pfs-crJc4HP5x_HmdHahx1H1NjHldsAwpNTRtNA5QjOffwfR7jWpAxhGmqQkCQPkfDBE4Tg1ua4fTWAW5IeBFP3TbasIccGLdYvefhwicwgz6XhhUr7R6JNqCqviXqpsSyGjjZz/s1600-h/man.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEigcd0B1Pfs-crJc4HP5x_HmdHahx1H1NjHldsAwpNTRtNA5QjOffwfR7jWpAxhGmqQkCQPkfDBE4Tg1ua4fTWAW5IeBFP3TbasIccGLdYvefhwicwgz6XhhUr7R6JNqCqviXqpsSyGjjZz/s400/man.jpg" /></a><br />
</div>राह पर चलता हुआ आदमी<br />
निहार रहा है<br />
राह के कंकड़ों को<br />
जिसने कितनों से खाया होगा<br />
ठोकर <br />
उसकी ओट में<br />
जा दुबकती चींटी को<br />
यह समझ कर कि<br />
कहीं यह मेरे पैरों से<br />
दबने के डर से<br />
ही नहीं जा चिपकी है<br />
उसकी ओट से<br />
नन्हीं सी जान<br />
जिसे बोध है<br />
जीवन मरण का<br />
आज<br />
आदमी<br />
महत्वाकांक्षा की होड़ में<br />
खुद को भूलता जा रहा है<br />
रास - रंग व भौतिकता से अवकाश<br />
शायद<br />
उसके अपने बस की बात नहीं !हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-75285805754398167552009-11-02T09:32:00.000+05:302009-11-02T09:32:42.168+05:30अहंकार के बादल......रुतबा<br />
शब्द आते ही<br />
सायास<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiSnKgruu9sxWlPZERiVit1Dc9F3D68Vzo-X6An_g4xhomKY-3y8QnSvENs7xszNL4t-kRZlvXm_-NU65WcxOgA8TiSwWV3wTBj0Uy6FyJM5yKKdczBztI4Ldr1QZXV8e3ngw9tauPMED8Z/s1600-h/clouds36.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiSnKgruu9sxWlPZERiVit1Dc9F3D68Vzo-X6An_g4xhomKY-3y8QnSvENs7xszNL4t-kRZlvXm_-NU65WcxOgA8TiSwWV3wTBj0Uy6FyJM5yKKdczBztI4Ldr1QZXV8e3ngw9tauPMED8Z/s200/clouds36.jpg" /></a><br />
</div>दिलो -दिमाग के किसी कोने में<br />
अहंकार के बादल<br />
घुमड़ - घुमड़<br />
हवा के साथ - साथ<br />
गलबहियां शुरु कर देते हैं<br />
<br />
सार्थक विचार<br />
खुद को समेटना शुरू कर देते हैं<br />
ठीक वैसे ही<br />
जैसे<br />
कछुआ विपरीत समय में<br />
सही अवसर के इन्तजार में<br />
समेट लेता है अपने - आपको ।हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-68721932993351168832009-10-20T11:09:00.000+05:302009-10-20T11:09:32.192+05:30दोराहा......पापा क्यों नहीं घर आ रहे मम्मी ! दीवाली भी बीत गयी ! बहुत दिन पहले आये भी तो बस पीछे का दो कमरा बनवा गये । बिटिया के सवालों का जवाब मीरा कैसे देती । पिछले कई बार से उनके आने पर बदले हुए हाव -भाव कुछ नकारात्मक संकेत दे ही रहे थे कि बच्चों के बार-बार पूछने पर जवाब देते नहीं बन रहा था । हां उनका एक काम अप्रत्याशित दिख रहा था कि इतने सारे पैसे लगातार रोजमर्रा की कमाई से अधिक कहां से ला रहे थे । राज कुछ समझ में भी न आ रहा था कि इतने पैसे आये कहां से कि पीछे का दो कमरा आसानी से बनवा दिया । <br />
<br />
इधर राहुल पैसे कमाने की बजाय पैसे पाने की ओर ऐसा उन्मुख हुआ कि इतना आगे निकल आयेगा उसे खुद भी पता न था । दुकान पर काम करने की बजाय एक ऐसी औरत जो अपना घर बार सब छोड़ नयी दुनियां की तलाश में आ मिली राहुल से । हां पैसे थे उसके पास । उसने एक मरद की खातिर अपना सारा पैसा - गहना सब इसी राहुल को दे दिया । वह राहुल के बताने पर भी उसकी दूसरी बीबी बनने को तैयार हो गयी । राहुल दो<br />
लड़कों व एक लड़की समेत तीन बच्चों का बाप था । कायदे से दो वक्त की रोटी भी जुटाना मुहाल था । सोचा कि पहले इसके पैसे से घर बनवा लूं बीबी और बच्चों को बाद में मना लूंगा । तब तक इसे इधर ही किराये के मकान में रखुंगा । किसी को पता भी न चलेगा । आसानी से घर भी जाया करूंगा और बीबी और बच्चों की परवरिश भी होगी और इधर कमा धमा एक नया घर बना इसे अलग रखूंगा । दोनों बीबियां अलग-अलग रहेंगी किसी को क्या ऐतराज मैं एक बीबी रखूं या दो । अरे यह तो इतना सारा पैसा हमें दे रही है कि दोनों को भली - भांति रख सकूंगा और बच्चों को आसानी से पढ़ा- लिखा सकूंगा । लेकिन कुदरत को तो कुछ और ही मंजूर था।<br />
<br />
राहुल का दोस्त अचानक दूसरी औरत के साथ राहुल को बाजार में देख राहुल का पीछा करना शुरु किया । अवाक रह गया वह । वह उसकी दूसरी बीबी होगी पहली के रहते अन्दाजा ही न था । राहुल तो मुह छिपा रहा था पर वह औरत बोली मैं इनकी दूसरी बीबी हूं । मैने इनके साथ कोर्ट मैरिज की है । कुछ ही महीने में मुझे बच्चा भी होने वाला है । यह जान होश उड़ गये रमेश के । भागा भागा आया गांव । अरे भाभी गजब हो गया । कैसे कहूं आज जो अपनी आंखों से देखा । सब कुछ क्रमशः सुना गया वह । सुनते ही मीरा के पांव तले धरती खिसक गयी । बताने लगी वह कि इसी लिये यह हमसे मुह छिपा रहे थे । मैं भी कहूं कि इतना सारा पैसा आया कहां से कि मकान आसानी से बन गया । हाहाकार मच गया परिवार की जिन्दगी तबाह हो गयी । रमेश ने मोबाईल नंबर दिया । पी सी ओ से बात करने पर फोन दूसरी बीबी ने उठाया और कहा -- मै राहुल की दूसरी बीबी बोल रही हूं ....। वह घर पर नहीं हैं ..।कोई काम हो तो बता दीजिये मैं बता दूगी । फोन पर ही तू-तू ,मैं-मैं शुरु हो गयी ।उसने कहा-- जो आप के यहां घर बना है वो मेरे ही पैसे का बना है........। मीरा बेहोश हो गिर पड़ी....।हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-11010230792909649062009-10-19T14:03:00.000+05:302009-10-19T14:03:10.188+05:30इन बन्धनों से ..........!<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgIA46c8GaKMXjdBJaZKYGvcIGKRssgsVdka6b8Q0sZeE1JXU-jpC5EmfWFgTZpcWtetjBjlfzYyIGUtl9SK_S07wqQF6Mb8CwD9CwTh7teHtP0OtRW3-FTNSoA1eyzuoFhuhsGJQperGsK/s1600-h/women.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgIA46c8GaKMXjdBJaZKYGvcIGKRssgsVdka6b8Q0sZeE1JXU-jpC5EmfWFgTZpcWtetjBjlfzYyIGUtl9SK_S07wqQF6Mb8CwD9CwTh7teHtP0OtRW3-FTNSoA1eyzuoFhuhsGJQperGsK/s320/women.jpg" /></a>नारी....... <br />
त्याग और उत्तरदायित्वों से सराबोर<br />
परंपरायें भी सिर चढ़ के बोलती हैं<br />
हां तुम्हें नहीं मुंह मोड़ना<br />
बरकरार रखना है अपनी परंपराओं को<br />
बरबस ही कैसे बच सकती है<br />
सामाजिक सरोकार<br />
अपनी संपूर्णता लिये<br />
आच्छादित हो जाते हैं<br />
विरोध का स्वर छिप सा जाता है<br />
नहीं निकल पाती आवाज<br />
मुक्त कर दो हमें<br />
इन बन्धनों से ..........!!हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-40228485463457432692009-10-17T05:55:00.001+05:302009-10-17T05:59:53.497+05:30आईये दीपावली मनायें....!<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhNI3_jjDt6l57oQCGqHrTcZlOQzpgqk3TQeaUdkbup3IrhfeZ1PpaNXiymfDQrFu4LKpGiouVsFOFlU3PtOFPqzk4jY_dqzL3Otd5nvtLDCx3fXrALwH-ovSYq8k6O0ExucLa-zaXje8Iw/s1600-h/ganesh+jI.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhNI3_jjDt6l57oQCGqHrTcZlOQzpgqk3TQeaUdkbup3IrhfeZ1PpaNXiymfDQrFu4LKpGiouVsFOFlU3PtOFPqzk4jY_dqzL3Otd5nvtLDCx3fXrALwH-ovSYq8k6O0ExucLa-zaXje8Iw/s200/ganesh+jI.jpg" /></a>आईये दीपावली मनायें ! <br />
प्राकृतिक और पारंपरिक ढंग से<br />
कम से कम<br />
एक दिन साल में ऐसा हो<br />
जिस दिन<br />
घर- आंगन रोशन हो<br />
कृत्रिम रोशनी से नहीं<br />
पारंपरिक घृत व तेल के दीयों से<br />
आतिशबाजी हो <br />
पटाखों की नहीं<br />
सार्थक विचार - अभिव्यक्ति की<br />
गूंज उठे जहां सारा.....।<br />
<br />
( शुभ दीपावली )हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-58239047856536888652009-10-15T17:43:00.000+05:302009-10-15T17:43:56.145+05:30कहां जायेंगे अरमान...<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj1AgID9Bhy-cwHxML8oGCIMk9MAbSvdeOeq78KmLPxw4042qX_gyLEB7nEsgLnfYNCvxR43Dx2_1TCUmzSVk7IiX8RLtVuI5YNFFEd9u3DtTXLy9R-RaTCJ9pg1ZhkRi2BSWtZaPDZgbmY/s1600-h/policy.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj1AgID9Bhy-cwHxML8oGCIMk9MAbSvdeOeq78KmLPxw4042qX_gyLEB7nEsgLnfYNCvxR43Dx2_1TCUmzSVk7IiX8RLtVuI5YNFFEd9u3DtTXLy9R-RaTCJ9pg1ZhkRi2BSWtZaPDZgbmY/s320/policy.jpg" /></a>माता पिता के अरमानों में<br />
लग जाते हैं पंख<br />
बड़ा ही विशाल फलक<br />
हो जाता है निर्मित<br />
जब नन्हा सा बालक<br />
स्कूल जाना शुरू करता है<br />
पिता हर जगह से खर्च में<br />
करता है कटौती<br />
मां घर का बजट है सुधारती<br />
कि कहीं से कोई कमी ना रह जाय<br />
हमारे अरमान तो धूल धूसरित हो गये<br />
बच्चे के अरमानों के पंख न कटें ।<br />
<br />
बच्चा अब बड़ा हो चला है<br />
किशोर हो गया है वह<br />
लग गयी है हवा<br />
मादक पदार्थों की<br />
सोहबत का असर जो है<br />
क्या पढ़ाई - क्या लिखाई<br />
अब तो ये डिस्को जाते हैं<br />
<br />
कहां जायेंगे अरमान<br />
माता पिता के<br />
उनकी बुराई इतना कहर ढायेगी<br />
क्या पता<br />
बिगाड़ दी बुढ़ौती<br />
<br />
वह माता - पिता जिसने जन्म दिया<br />
वही सोचते हैं<br />
जन्म ही क्यों दिया ऐसे बच्चे को ।हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-54832044333301091512009-10-14T05:34:00.000+05:302009-10-14T05:34:34.602+05:30उसके उड़ानों के कोई पंख न काटे....एक नारी<br />
अपनी ही बिरादरी की <br />
कैसे हो जाती है दुश्मन<br />
शुरू हो जाता है<br />
अत्याचारों का सिलसिला..<br />
एक, दो,तीन ही नहीं अनेकों<br />
प्रताड़ना है कि अपना स्वरूप बदल-बदल कर<br />
आ जाती है सामने<br />
रुकने का नाम ही नहीं लेती<br />
शायद वह भूल जाती है<br />
उसने भी लिया होगा<br />
मां के ही कोख से जन्म<br />
पली बढ़ी होगी<br />
ब्याही गयी होगी<br />
पिया के घर<br />
संभव है <br />
उसके साथ हुआ होगा भेद-भाव<br />
क्या उस भेद-भाव का बदला<br />
भावी पीढ़ी से लिया जाना<br />
कहां तक उचित है ?<br />
<br />
अब तो महिला सशक्तिकरण की बात चल रही है<br />
हर मां को भी आना होगा आगे<br />
ना हो भेद-भाव<br />
बेटी के जन्म पर<br />
गाये जांय सोहर <br />
दादी अम्मा बलैया लें<br />
घर में बाजे ढोल<br />
मनोदशा के विकास में ना हो वह कुण्ठित<br />
वह भी पढे़ उसी स्कूल में<br />
जहां उसका भैया पढ़ता है<br />
उसके उड़ानों के कोई पंख न काटे<br />
जीये अपना जीवन करीने से ।हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-42726836431601021952009-10-13T04:59:00.000+05:302009-10-13T04:59:37.835+05:30आओ ! बातें करें.....आओ ! बातें करें<br />
आज क्यों नहीं है सुख-शान्ति ?<br />
<br />
आओ ! बातें करें<br />
कितना अस्त-व्यस्त है जन-जीवन ?<br />
<br />
आओ ! बातें करें<br />
इतना क्यों हाहाकार मचा है ?<br />
<br />
आओ ! बातें करें<br />
अरमानों ने क्यों दम तोड़ा है ?<br />
<br />
आओ ! बातें करें<br />
इन्तजार की घड़ी इतनी लम्बी क्यों है ?<br />
<br />
आओ ! बातें करें<br />
दरस को प्यासे नयन क्यों हैं ?<br />
<br />
आओ ! बातें करें.....!हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-88212803663266563052009-10-12T05:28:00.000+05:302009-10-12T05:28:34.936+05:30समय की तूलिका से........!जीवन का एक-एक पल<br />
समय की तूलिका से<br />
रच रहा अप्रतिम इतिहास<br />
जब भी पलट कर देखता हूं<br />
नित अधुनातन हो रहा<br />
अतीत की एक-एक ईंट से<br />
चुनी दीवारों पर<br />
अरमानों के छ्त<br />
न जानें कब पड़ेंगे<br />
विचारों के कपाट<br />
संवेदनाओं के वातायन<br />
कहीं ढूंढते ने फिरें<br />
अपनी पहचान को<br />
यही सोच कर हैरत में हो जाता हूं<br />
आशा - निराशा के बीच<br />
अन्तराल का तनाव<br />
कहीं भटका न दे<br />
हां !<br />
शायद इसीलिये<br />
पल प्रतिपल<br />
बुनता हूं ऐसा ताना-बाना<br />
विवेकी होकर<br />
कहीं इतिहास का रंग - रोगन बिगड़ ना जाय ।हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-86260853955501321632009-10-10T11:16:00.001+05:302009-10-10T11:22:22.439+05:30......सभी पूर्णांक हो जाते हैं नतमस्तकजब तुम्हारी उपस्थिति होती है <br />
अनोखा पर्यावरण<br />
निर्मित हो जाता है<br />
सभी पूर्णांक हो जाते हैं नतमस्तक<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6rtW9uYn1O-Nm0ql6R35x32jmk316TtE9sS13NH9dUfgDtipM0dJx3jPO-xp47IjqKxTKszvEPGAhehGCSR45LiCXha8m2gdklLF7DhpAWHA96uKcDmctYRMdlmsvBxj8rR-fJthof1Ln/s1600-h/love.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6rtW9uYn1O-Nm0ql6R35x32jmk316TtE9sS13NH9dUfgDtipM0dJx3jPO-xp47IjqKxTKszvEPGAhehGCSR45LiCXha8m2gdklLF7DhpAWHA96uKcDmctYRMdlmsvBxj8rR-fJthof1Ln/s320/love.jpg" /></a><br />
</div>उसमें नहीं होता<br />
ओजोन छिद्र का प्रभाव<br />
नहीं होती है मात्रा<br />
आर्सैनिक की पानी में<br />
नहीं चिन्ता घटते जल स्तर की<br />
नहीं है विषाक्त गैसों का प्रभाव<br />
और कुछ भी नहीं होता क्षत-विक्षत......!<br />
<br />
वहां <br />
वह सब कुछ है<br />
जिनसे मिलती हैं<br />
अनन्त खुशियां<br />
स्वच्छ वातावरण<br />
चंहुदिश हरियाली<br />
पक्षियों का कलरव<br />
जिस जहां में यह सब हो<br />
उसकी रचना कैसी होगी<br />
तुम्हारे अंकेक्षण में<br />
सभी पूर्णांक हो जाते हैं नतमस्तक<br />
कहां और किसकी होगी परीक्षा ।हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-3681948525900729009.post-33781528097275407022009-10-08T18:20:00.000+05:302009-10-08T18:20:10.898+05:30...साथ ही भूल सुधार के लिये भीअस्वस्थता<br />
गजब का अवकाश है <br />
चेतन अवचेतन से परे <br />
बस गुजरना भी <br />
चिकित्सकीय परीक्षण से <br />
<br />
अस्वस्थता से<br />
स्वास्थ्य-लाभ की यात्रा में<br />
बड़े सरोकार हैं<br />
और पैरोकार भी<br />
बन जाता है स्वास्थ्य-लाभ<br />
एक उत्सव-सा<br />
इस भागमभाग से<br />
कुटुम्ब और समाज<br />
ऐसे अवसर पर<br />
यथोचित भागीदारी से नहीं चूकता<br />
संभव है कि यही सामाजिक आत्मीयता हो<br />
समरसता के लिये<br />
सामंजस्य के लिये<br />
सदभाव के लिये<br />
और साथ ही भूल सुधार के लिये भी ।हेमन्त कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01073521507300690135noreply@blogger.com8