कलरव
Thursday, December 31, 2009
मर्म की टोकरी भरने को है......
मर्म की टोकरी भरने को है
चलायमान सुधियों में
जिसने देखा
कदम से कदम मिलाते
हर क्षण को
चक्रारैव पंक्ति में
जहां
स्थान तलाशती
नित अभिनव होने को
अनगिन खुशियां....।
हां तुम हो पास ही
पर
तीसरा नेत्र कहां
वंचित हूं न......!
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