Saturday, January 30, 2010

तरलता से ही जुड़ते तुम..

तुम नहीं हो
यह अनुभव
नयन सजल कर देता है,
तुम्हारा होना भी
आँखे भर देता है ।

तरलता से ही जुड़ते तुम
हर कहीं, कभीं भी ।

Tuesday, January 26, 2010

समय व असमय की सार्थकता......


समय व असमय की सार्थकता
द्वन्दात्मक रूप में
क्षण-प्रतिक्षण
उकेरना आरंभ कर देते हैं
हर रंग को
बारी-बारी से
अतीत की घटी घटनाओं में
ठीक वैसे ही
जैसे
कोई व्याख्याता
प्रस्तुत कर रहा हो..
शोधपरक पत्र.....!

सरकते हुए विगत में
दर्ज होना कौन नहीं चाहेगा
परिस्थितिजन्य भटकाव
नियति पर
अनगिन आरोप थोप जाते हैं ...

और
रह जाता है अधूरा सा इतिहास....?

Saturday, January 2, 2010

सायास ही किसी का रुदन नहीं होता......

सायास ही किसी का रुदन नहीं होता , वेदना जब असीम हो जाय सब कुछ धरा का धरा रह जाता है चाहे वह कोई खुशी हो , त्यौहार हो या नव वर्ष ...! कल एक ओर सारे लोग नूतन वर्षाभिनन्दन में मग्न थे और पास में ही पड़ोसन का बेटा गुम हो गया । माहौल अफरातफरी का हो गया । बधाईयों और अभिनन्दन के दौर में ऐसा हो जाना बहुत ही कष्टकारी होता है । एक तो उसका पिता घर से बाहर सुदूर रहता है । घर में उसे व उसकी मां को लेकर छोटी बहन कुल तीन की संख्या थी । पुत्र का इस तरह से गुम होना किसी पहाड़ के टूट के गिरने से कम न था ।

मां के लिए पति की अनुपस्थिति में बेटा ही आधिकारिक संबल होता है । घर का खर्चा किसी तरह से सिलाई - बुनाई, फाल- पीको आदि से चलाना इस इक्कीसवीं सदी की दुनिया में आसान नहीं । उसकी मां को किसी प्रकार से विश्वास दिलाने की कोशिश कब से की जा रही थी कि धीरज रखिये कुछ लोग उसे ढूढने में लगे हैं । मुहल्ले में किये गये सद व्यवहार की परख ऐसे ही समय में होती है जब व्यक्ति विपरीत परिस्थिति से गुजर रहा होता है ।

ऐसी घटनायें अनायास ही मन में चिढ़्चिढ़ापन ला देती हैं कि हे भगवान... ! आखिर में मैने आपका क्या बिगाड़ा था कि विपत्तियों का सामना हमें ही करना हो रहा है । सचमुच आस्तिकता को धक्का लगना स्वाभाविक है ....परिस्थितियां जब विपरीत होती हैं ..विवेक स्वभावत: काम करना बन्द कर देता है । उसके सामने हंसी - खुशी की बात ... उसे मजाक उड़ाने जैसी प्रतीत होती है ।

दूसरों के दिये जा रहे आश्वासन से किसी भी मां के कलेजे को राहत नहीं मिलती । उसे तो बस उसका लाल चाहिये । मां के जीवन का उत्साह बच्चों के लालन - पालन में ही होता है । नियति जब इससे भी उसे वंचित कर दे .....सच में....! उसका सर्वस्व बिखरता हुआ दिखना कहीं से कमतर नहीं । सामाजिक सरोकार सिवाय सहयोग के हृदयाघात को मिटा सका है भला........?

शाम होते- होते वह बालक अपने मित्र व उसके माता - पिता के साथ घर आया । अब क्या था......? गले से लगा रो पड़ी वह...। छोटा सा बालक सूचना का हाल तो जानता ही न था कि घर बताना या न बताना जैसी भी कोई बात होती है .....! उसे तो बस छुट्टी में मौज करना था । मां के लिये पल भर भी बालक ओझल हो जाय, कितना मुश्किल होता है खुद को संभालना । यहां .......सुबह से शाम हो चली थी .........!

Friday, January 1, 2010

अरे ! नया साल, नया साल.....

पड़ोस के बच्चे ने अपने साथी से कहा--
"नया साल तुम्हें मुबारक हो"
साथी ने कहा -
अरे !
साल तुमने दिया ही नहीं
यह क्या कह रहे हो ...?
अरे ! नया साल, नया साल

मेरी मां
जब कहती है-
अरे बाबा !
किताब मुबारक हो
वह हमें किताब जरूर देती है
तुमने हमें साल कब दिया.......?
जो कह रहे हो -
"नया साल तुम्हें मुबारक हो"