Monday, July 27, 2009

तुम्हारी याद

जब भी दर्द में होता हूं
तुम्हारी याद आती है
तुम्हारा
आम्रमंजरियों के बीच से गुजरना
पगडन्डियों कि उडती धूल
जो तुमसे होकर जाती थी
उसमें
तुम्हारी खुशबु होती थी
समय के पहिए का

रफ्तार पकडना
नहीं भूलता
नंगे पांवों मे कांटो का चुभना
रेल की पटरियों के किनारे
पैरों का फिसलना
तुम्हारा सिसकना
आज भी याद है
कैसे सह पाती थी
जब भी दर्द में होता हूं
तुम्हारी याद आती है..........!

Sunday, July 26, 2009

स्वप्नलोक में

स्वप्नलोक में
और
कल्पनालोक में ही
शान्ति का मार्ग है
इस पार की दुनियां में
अब अमन-चैन सुख-दुख
सिमटता जा रहा है
घटनाएं
परिवर्तित स्वरुप में
सामने आ रही हैं
लूटपाट-हत्या
अत्याचार आदि का
बोलबाला है............!

Saturday, July 25, 2009

तुम्हारा आना

तुम्हारा आना
जैसे ठंडी बयार का पास से हो कर गुजरना
तुम्हारा आना
जैसे चारु-चन्द्र की शीतलता का एहसास कराना
तुम्हारा आना
जैसे प्यासे खेतों में झमाझम बारिश का होना
तुम्हारा आना
जैसे बु्झते दीप का फिर से जलना
तुम्हारा आना
जैसे सब दु:खों को आते ही हर लेना
तुम्हारा आना................!

Friday, July 24, 2009

गंगा घाट पर

सूर्यग्रहण पर गंगा स्नान
कितना पावन काम
पर
मंगल-अमंगल
किसके हिस्से
यह तो है विधि हाथ
गंगा घाट पर
भरी भीड. में
हुई स्त्री की मौत
उसे पता न था.............!
उसके हिस्से क्या होगा
मंगल या अमंगल........?

Thursday, July 23, 2009

किसी का इन्तजार

अब गली सूनी सी लगती है
चिरपरिचित दरवाजो पर
कोइ नही है
पहले लगता था
कोइ न कोइ खडा है
पर
आज
दरवाजे भी

लोग भी..........

नही करता
कोई किसी का इन्तजार............!

Tuesday, July 21, 2009

जिन्दगी के रास्ते पर

जिन्दगी के रास्ते पर
निकलो
सामने होगी
दुख-सुख, इच्छा-अनिच्छा
आकांक्षा-महत्वाकांक्षा
और भी बहुत कुछ
इन सबके बीच झूलता हुआ आदमी
एक-एक मील का पत्थर
पार कर रहा है
इस रास्ते में
चौराहा भी है
चौराहे पर कुछ कथित
राह बताने वाले
और राह में चलने वाले
बहुत ही मुश्किल है
राह के लिये
मित्र का चुनाव
जिसे मिल जाय सही मित्र
और हमसफर भी
फिर उसे जीवन पथ पर
बढ़ने से
उस सीमा तक पहुँचने से
कौन रोक सकता है ?
जिसके आगे राह नहीं ....

Monday, July 20, 2009

झुक जाये समय भी

प्रिय !
उभरो
क्षितिज पर
महामानव बन कर
करो कुछ ऐसा
याद रखे दुनिया जिसे
और
बन जाओ
इतिहास पुरुष

भूलो
और
सबक लो
उस पल से
जब असहाय से
हो गये थे तुम

बनो कर्तव्यनिष्ठ
बदल सको परिस्थितियाँ
झुक जाये समय भी ।