Monday, July 27, 2009

तुम्हारी याद

जब भी दर्द में होता हूं
तुम्हारी याद आती है
तुम्हारा
आम्रमंजरियों के बीच से गुजरना
पगडन्डियों कि उडती धूल
जो तुमसे होकर जाती थी
उसमें
तुम्हारी खुशबु होती थी
समय के पहिए का

रफ्तार पकडना
नहीं भूलता
नंगे पांवों मे कांटो का चुभना
रेल की पटरियों के किनारे
पैरों का फिसलना
तुम्हारा सिसकना
आज भी याद है
कैसे सह पाती थी
जब भी दर्द में होता हूं
तुम्हारी याद आती है..........!

1 comment:

Himanshu Pandey said...

गहरी बात कहने के लिये इन्हीं सहज शब्दों की जरूरत होती है शायद तभी तो कह गये बहुत कुछ । आभार ।