जीवन का एक-एक पल
समय की तूलिका से
रच रहा अप्रतिम इतिहास
जब भी पलट कर देखता हूं
नित अधुनातन हो रहा
अतीत की एक-एक ईंट से
चुनी दीवारों पर
अरमानों के छ्त
न जानें कब पड़ेंगे
विचारों के कपाट
संवेदनाओं के वातायन
कहीं ढूंढते ने फिरें
अपनी पहचान को
यही सोच कर हैरत में हो जाता हूं
आशा - निराशा के बीच
अन्तराल का तनाव
कहीं भटका न दे
हां !
शायद इसीलिये
पल प्रतिपल
बुनता हूं ऐसा ताना-बाना
विवेकी होकर
कहीं इतिहास का रंग - रोगन बिगड़ ना जाय ।
8 comments:
"पल प्रतिपल
बुनता हूं ऐसा ताना-बाना
विवेकी होकर
कहीं इतिहास का रंग - रोगन बिगड़ ना जाय । "
आत्मविश्वास लुभा गया प्यारे ! सुन्दर रचना । धन्यवाद ।
चुनी दीवारों पर
अरमानों के छ्त
न जानें कब पड़ेंगे
बहुत सुन्दर
इतिहास रक्षक की प्रतिबद्धता !
विचारों के कपाट
संवेदनाओं के वातायन
अप्रतिम इतिहास की दीवारें ...
इतिहास की सुरक्षा बनाये रखने को रची है बेहतर शब्द संयोजन की मेहराबें ...
बहुत शुभकामना ..!!
हेमंत भाई कितना समय देते हो ये सब तैयार करने में :)
मुझसे तो एक लाइन भी बड़ी मुस्किल से तैयार नहीं हो पाती
bahut badhiya likha........badhayi
बहुत सही!!!
विवेकी होकर
कहीं इतिहास का रंग - रोगन बिगड़ ना जाय ।
क्या बात कही!
विवेकी होकर
कहीं इतिहास का रंग - रोगन बिगड़ ना जाय ।
अगर यही बात हमारे पूर्वजों ने भी सोचा होता तो हमारा इतिहास थोडा और गौरवशाली होता......
आपकी तुलिका ने तो बस कमाल ही कर दिया....बहुत सुन्दर....
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