Saturday, January 30, 2010

तरलता से ही जुड़ते तुम..

तुम नहीं हो
यह अनुभव
नयन सजल कर देता है,
तुम्हारा होना भी
आँखे भर देता है ।

तरलता से ही जुड़ते तुम
हर कहीं, कभीं भी ।

9 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत बेहतरीन!!

निर्मला कपिला said...

बहुत खूब धन्यवाद

Himanshu Pandey said...

शब्द तो कम हैं, अनुभूति बड़ी है ।
तरलता सदैव ही तुम्हें आप्लावित करती है, आतंकित भी !
सम्हल कर रहो !
धन्यवाद ।

vandana gupta said...

badi gahri baat kah di........sara adhyatm hi utaar diya chand shabdon mein.

Gyan Dutt Pandey said...

तरलता वाष्पित भी होती है। ठोस-तरल-विरल, सभी आंतरिक अनुभूतियां हैं।
आप बहुत बढ़िया लिखते हैं बन्धु।

वाणी गीत said...

तरलता रिश्तों को बांधती है ...पूर्ण भी करती है ...और कभी कभी दूर भी ....!!

स्वप्न मञ्जूषा said...

कभी पढ़ा था द्रव्य अपना रास्ता स्वयं ढूंढ लेते हैं...यहाँ तक कि रिश्ते भी...
सुन्दर ..नहीं....अतिसुन्दर..!!
आभार...

sandhyagupta said...

Kya baat hai.Bahut sundar.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

गागर में सागर।
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घूँघट में रहने वाली इतिहास बनाने निकली हैं।
खाने पीने में लोग इतने पीछे हैं, पता नहीं था।