आज उसके घर में चूल्हा नहीं जला
हांडी बर्तन सब कोसते रहे
अपने को
खैरात में मिला अनाज
लौटा जो दिया था...!
ईमानदारी और आस्था ने क्या दिया उसे
सिवाय आशा के
ढिबरी भी ढुलक गयी
मां का आंचल भी जल गया ।
बच्चों ने भी कहा -
बाबू को कल काम जरूर मिलेगा
मां का कलेजा मुंह को आ गया
क्या समझदारी और बीच के रास्ते की भावभूमि
आभाव में ही पलती है
लाचार बाप भी क्या कर
सुबह का इन्तजार
क्या नरेगा क्या आम मजदूरी
सबने न्याय किया है .....?
अमीरी और गरीबी की
यह खाईं क्यों नहीं पटती
बस कागज पर रिकार्ड ही सुधरेंगे ।
9 comments:
नरेगा पर एक लेख लिखिए भाई। बहुत घपलाबाजी चल रही है। 2 अक्टूबर के अखबार की सुर्खी ही यही थी। गान्धी जी के ग्राम स्वराज्य और शास्त्री जी की ईमानदारी को इससे अच्छी श्रद्धांजलि क्या हो सकती है कि आपस में 10000 करोड़ रुपयों को बाँट लिया गया। गाँव के मनई समृद्ध होंगे जिससे सुराज आएगा। इतने रुपए जिन्हें मिले होंगे वे फिर क्यों बेईमानी करेंगे ?... सपना देख रहा हूँ शायद !
सचमुच ! बड़ा विप्लव है !
अमीरी और गरीबी की
यह खाईं क्यों नहीं पटती
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खाई पाटने वाले केवल राजनीति करते हैं। आर्थिक विकास नहीं होता तो ऐसी कारुणिक कवितायें जन्म लेती हैं। बीमारू प्रान्त गरीब हैं कि यहां जाति, सामन्तवाद और अशिक्षा में बंटा है प्रान्त और धूर्त दुह रहे हैं रिसोर्सेज।
गरीबी का महिमामण्डन गरीबी को स्थाई बनाता है!
ज्ञान जी के सूत्र वाक्य का ही पुनः पारायण करना चाहूँगा -
गरीबी का महिमामण्डन गरीबी को स्थाई बनाता है!
अमीर गरीब के बीच की खाई पटना बहुत दुष्कर है ...
बहुत ही संवेदनशील रचना ..शुभकामनायें ..!!
क्या सोच है आपकी बहुत सही आकलन
ईमानदारी और आस्था ने क्या दिया उसे.nice
बहुत सम्वेदनापूर्ण ..शुभकामनायें ..!!
आपकी भावना अच्छी लगी लेकिन इसकी आलोचना मैं अपनेम ब्लाग में करूंगा।
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