आओ ! बातें करें
आज क्यों नहीं है सुख-शान्ति ?
आओ ! बातें करें
कितना अस्त-व्यस्त है जन-जीवन ?
आओ ! बातें करें
इतना क्यों हाहाकार मचा है ?
आओ ! बातें करें
अरमानों ने क्यों दम तोड़ा है ?
आओ ! बातें करें
इन्तजार की घड़ी इतनी लम्बी क्यों है ?
आओ ! बातें करें
दरस को प्यासे नयन क्यों हैं ?
आओ ! बातें करें.....!
6 comments:
आओ ! बातें करें
इन्तजार की घड़ी इतनी लम्बी क्यों है ?
सही है बात करने के मुद्दो की कमी तो नही है --
कैसे करे बातें ...सर पर दिवाली है और बहुत काम बचा है ...
हाहा ..!!
इतनी बातों के लिये अनगिन दिन और रातें चाहियें प्यारे !
सच में खाली कौन है इन दिनों ! आपाधापी भरा जीवन! वैसे यही तो बताना चाहा है तुमने भी इस रचना में । आभार ।
केवल बातें हेमंत जी !
क्या बात करे हेमंत भाई महगाई ने मार डाला है :)
सुन्दर लिखे हो आप जी .. भाई साहब अपने तबियत के बारे में भी थोडा प्रकाश डाल दीजिये
सही है । मनुष्य के बीच सिर्फ सम्वाद की ही तो आवश्यकत है ।
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