Thursday, October 15, 2009

कहां जायेंगे अरमान...

माता पिता के अरमानों में
लग जाते हैं पंख
बड़ा ही विशाल फलक
हो जाता है निर्मित
जब नन्हा सा बालक
स्कूल जाना शुरू करता है
पिता हर जगह से खर्च में
करता है कटौती
मां घर का बजट है सुधारती
कि कहीं से कोई कमी ना रह जाय
हमारे अरमान तो धूल धूसरित हो गये
बच्चे के अरमानों के पंख न कटें ।

बच्चा अब बड़ा हो चला है
किशोर हो गया है वह
लग गयी है हवा
मादक पदार्थों की
सोहबत का असर जो है
क्या पढ़ाई - क्या लिखाई
अब तो ये डिस्को जाते हैं

कहां जायेंगे अरमान
माता पिता के
उनकी बुराई इतना कहर ढायेगी
क्या पता
बिगाड़ दी बुढ़ौती

वह माता - पिता जिसने जन्म दिया
वही सोचते हैं
जन्म ही क्यों दिया ऐसे बच्चे को ।

5 comments:

दिगम्बर नासवा said...

प्रभावी रचना hemant जी ..............
आपको और परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ

Mishra Pankaj said...

माता पिता के अरमानों में
लग जाते हैं पंख
बड़ा ही विशाल फलक
हो जाता है निर्मित
जब नन्हा सा बालक
स्कूल जाना शुरू करता है
पिता हर जगह से खर्च में
करता है कटौती

बिलकुल सही चित्रण हेमंत भाई
आपको और पुरे परिवार को दीपावली की शुभकामा

स्वप्न मञ्जूषा said...

न जाने कितने जीवन कि कटु सच्चाई बता रही है आपकी कविता...
मन को उद्वेलित कर गयी ये कविता..
आभार...

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुंदर --इस खुलेपन की जितनी भी तारीफ़ करें कम है, दोस्त।

dher sari subh kamnaye
happy diwali

from sanjay bhaskar
haryana
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

संजय भास्‍कर said...

bahut hi sunder

happy diwali

from sanjay bhaskar
haryana
http://sanjaybhaskar.blogspot.com