नारी.......
त्याग और उत्तरदायित्वों से सराबोर
परंपरायें भी सिर चढ़ के बोलती हैं
हां तुम्हें नहीं मुंह मोड़ना
बरकरार रखना है अपनी परंपराओं को
बरबस ही कैसे बच सकती है
सामाजिक सरोकार
अपनी संपूर्णता लिये
आच्छादित हो जाते हैं
विरोध का स्वर छिप सा जाता है
नहीं निकल पाती आवाज
मुक्त कर दो हमें
इन बन्धनों से ..........!!
9 comments:
बेह्तरीन अभिव्यक्ति
नारी मुक्ति तभी सम्भव है ---
वाह हेमंत भाई वाह .
यार कभी तो अपने तबियत के बारे में भी बता दीजिये
नारी का स्वर मुक्ति की याचना के लिये ही खुलता देख विचित्र हो जाता हूँ ।
बंधनों से मुक्ति की सामर्थ्य नारी के पास ही है ।
रचना का आभार ।
अच्छी रचना है .. बधाई !!
कुछ बंधन इतने प्यारे होते हैं की उनसे आजाद होने का मतलब बिखर जाना ही होता है ....बात तो तब है जब बंधन में होकर भी मुक्त जिया जाये ...
तन पिंजर में कैद सही भीतर मन आजाद है ..!!
वाणी गीत से सहमति।
बन्धु मुक्ति भीतर ही है - बन्धन तो हर जगह हैं, सभी बँधे हैं।
aap ka blog pathniy hai
-mukesh
kalrav waise hi ha jase sury ka udaya hona-mukesh
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