Thursday, December 31, 2009

मर्म की टोकरी भरने को है......


मर्म की टोकरी भरने को है
चलायमान सुधियों में
जिसने देखा
कदम से कदम मिलाते
हर क्षण को
चक्रारैव पंक्ति में
जहां
स्थान तलाशती
नित अभिनव होने को
अनगिन खुशियां....।

हां तुम हो पास ही
पर
तीसरा नेत्र कहां
वंचित हूं न......!

6 comments:

Himanshu Pandey said...

क्या कह गये आत्माराम !

इस तरह की अभिव्यक्ति का भी स्थान है सुहृद ! अक्षरशः देखा गया लिखने वाला समझता रहा हूँ मैं, सोचा गया भी लिखने लगे आजकल !
जबरदस्त ! आभार ।
नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।

Udan Tashtari said...

गजब गहरी रचना!!

बहुत जबरदस्त!!


मुझसे किसी ने पूछा
तुम सबको टिप्पणियाँ देते रहते हो,
तुम्हें क्या मिलता है..
मैंने हंस कर कहा:
देना लेना तो व्यापार है..
जो देकर कुछ न मांगे
वो ही तो प्यार हैं.


नव वर्ष की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ.

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

निर्दोष रचना। अनगिनत अर्थ।
मैं अभी चक्र गति में हूँ।
केन्द्र पर मुग्ध।

वाणी गीत said...

कविता की पंक्तियाँ उलझा रही है ...इसलिए इस पर कुछ नही ...

नववर्ष की बहुत शुभकामनाएँ ...!!

IMAGE PHOTOGRAPHY said...

सुन्दर रचना।

Gyan Dutt Pandey said...

बहुत अनूठा!
नव वर्ष हार्दिक मंगलमय हो!