मर्म की टोकरी भरने को है
चलायमान सुधियों में
जिसने देखा
कदम से कदम मिलाते
हर क्षण को
चक्रारैव पंक्ति में
जहां
स्थान तलाशती
नित अभिनव होने को
अनगिन खुशियां....।
हां तुम हो पास ही
पर
तीसरा नेत्र कहां
वंचित हूं न......!
इस तरह की अभिव्यक्ति का भी स्थान है सुहृद ! अक्षरशः देखा गया लिखने वाला समझता रहा हूँ मैं, सोचा गया भी लिखने लगे आजकल ! जबरदस्त ! आभार । नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।
मुझसे किसी ने पूछा तुम सबको टिप्पणियाँ देते रहते हो, तुम्हें क्या मिलता है.. मैंने हंस कर कहा: देना लेना तो व्यापार है.. जो देकर कुछ न मांगे वो ही तो प्यार हैं.
6 comments:
क्या कह गये आत्माराम !
इस तरह की अभिव्यक्ति का भी स्थान है सुहृद ! अक्षरशः देखा गया लिखने वाला समझता रहा हूँ मैं, सोचा गया भी लिखने लगे आजकल !
जबरदस्त ! आभार ।
नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।
गजब गहरी रचना!!
बहुत जबरदस्त!!
मुझसे किसी ने पूछा
तुम सबको टिप्पणियाँ देते रहते हो,
तुम्हें क्या मिलता है..
मैंने हंस कर कहा:
देना लेना तो व्यापार है..
जो देकर कुछ न मांगे
वो ही तो प्यार हैं.
नव वर्ष की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ.
निर्दोष रचना। अनगिनत अर्थ।
मैं अभी चक्र गति में हूँ।
केन्द्र पर मुग्ध।
कविता की पंक्तियाँ उलझा रही है ...इसलिए इस पर कुछ नही ...
नववर्ष की बहुत शुभकामनाएँ ...!!
सुन्दर रचना।
बहुत अनूठा!
नव वर्ष हार्दिक मंगलमय हो!
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