Monday, February 8, 2010

ले जाना है मुझे........!

समय का सामना
निष्ठा से हो
कुछ भी कठिन नहीं
चट्टान सी समस्या भी
दरकने लगती है.....।

उसके बीच से
राह खुद-ब-खुद
आमंत्रण दे रही होती हैं....
देखो.....
मैं राह हूं
आओ ..!
ले जाना है मुझे.....!

वहां
जहां
मंजिल के पार
और भी बहुत कुछ है
क्योंकि जानता हूं मैं
मंजिल तो बस ...
एक पड़ाव है
और
इसके सिवा कुछ भी नहीं.....!

13 comments:

Himanshu Pandey said...

चलते जाना रे.....

सुन्दर रचना । आभार ।
सोचें मत इतना । ब्लॉग में फाग मची है ..शामिल होइये ।

Gyan Dutt Pandey said...

सच है मित्र, यह जिन्दगी मुसलसल सफर है!

संजय भास्‍कर said...

Plz visit my post
…. गरीब हूँ मैं.......

निर्मला कपिला said...

सुन्दर प्रस्तुति धन्यवाद्

रानीविशाल said...

bahut sundar rachana...Badhai !!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/

वाणी गीत said...

मंजिल तो एक पड़ाव है ....आखिरी मंजिल सबकी एक ही है ...छोटी बड़ी नदियाँ सभी दौडती समंदर की ओर ही हैं ...तो साथ मिलकर हँसते मुस्कुराते क्यों नहीं ...

Udan Tashtari said...

बहुत बेहतरीन!

vandana gupta said...

bahut hi sundar prastuti ........sach raahein khud-b-khud banne lagti hain.

Unknown said...

मंजिल तो बस ...
एक पड़ाव है
और
इसके सिवा कुछ भी नहीं.....!

बहुत सुन्दर।धन्यवाद।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अच्छा है.

अभिषेक आर्जव said...
This comment has been removed by the author.
आमोद प्रकाश चतुर्वेदी said...

bkjkjn.nlk

AMOD PRAKASH CHATURVEDI said...

achchha