समय का सामना
निष्ठा से हो
कुछ भी कठिन नहीं
चट्टान सी समस्या भी
दरकने लगती है.....।
उसके बीच से
राह खुद-ब-खुद
आमंत्रण दे रही होती हैं....
देखो.....
मैं राह हूं
आओ ..!
ले जाना है मुझे.....!
वहां
जहां
मंजिल के पार
और भी बहुत कुछ है
क्योंकि जानता हूं मैं
मंजिल तो बस ...
एक पड़ाव है
और
इसके सिवा कुछ भी नहीं.....!
13 comments:
चलते जाना रे.....
सुन्दर रचना । आभार ।
सोचें मत इतना । ब्लॉग में फाग मची है ..शामिल होइये ।
सच है मित्र, यह जिन्दगी मुसलसल सफर है!
Plz visit my post
…. गरीब हूँ मैं.......
सुन्दर प्रस्तुति धन्यवाद्
bahut sundar rachana...Badhai !!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
मंजिल तो एक पड़ाव है ....आखिरी मंजिल सबकी एक ही है ...छोटी बड़ी नदियाँ सभी दौडती समंदर की ओर ही हैं ...तो साथ मिलकर हँसते मुस्कुराते क्यों नहीं ...
बहुत बेहतरीन!
bahut hi sundar prastuti ........sach raahein khud-b-khud banne lagti hain.
मंजिल तो बस ...
एक पड़ाव है
और
इसके सिवा कुछ भी नहीं.....!
बहुत सुन्दर।धन्यवाद।
अच्छा है.
bkjkjn.nlk
achchha
Post a Comment