आत्मबोध के चलते नकारात्मक से सकारात्मक की यथार्थ को उन्मुख आपके शब्दों की यात्रा ... क्या बात है ...!! हाँ ...मौन इतनी लम्बी अवधि का नहीं होना चाहिए ...लिखते रहा करें ...!!
मेरे सफर पड़ाव न गिन सुनो कि मैं घूमता वृत्त परिधि पर अन्दर यथार्थ है या बाहर स्वप्न - नहीं पता रुकता हूँ ये रुकना पड़ाव नहीं अंतहीन यात्रा है घूमना घूमना रुकना सुस्ताना पड़ाव नहीं - बस घूमना एक ही राह बार बार ... चरैवेति चरैवेति .. मैं बुद्ध नहीं सुन सफर।
12 comments:
कुल मिलाकर अनगिन पड़ावों की यात्रा ही है जिंदगी !
वापसी तो हुई !
इतने मौन न रहे मेरे भाई !
आत्मबोध के चलते नकारात्मक से सकारात्मक की यथार्थ को उन्मुख आपके शब्दों की यात्रा ...
क्या बात है ...!!
हाँ ...मौन इतनी लम्बी अवधि का नहीं होना चाहिए ...लिखते रहा करें ...!!
नकारात्मक भाव पहले आपकी निष्ठा टटोलता है, तभी सकारात्मक भाव को आने देता है ।
बढ़ेगा हौसला शनै शनै
ख्वाब से हकीकत की यात्रा में
अनेक पड़ाव हैं...
अच्छी लगी पन्क्ति !
मेरे सफर
पड़ाव न गिन
सुनो कि मैं घूमता
वृत्त परिधि पर
अन्दर यथार्थ है
या बाहर स्वप्न -
नहीं पता रुकता हूँ
ये रुकना पड़ाव नहीं
अंतहीन यात्रा है
घूमना घूमना
रुकना सुस्ताना
पड़ाव नहीं -
बस घूमना एक ही राह
बार बार ...
चरैवेति चरैवेति
.. मैं बुद्ध नहीं
सुन सफर।
बहुत गूढ़ कविता है भाई ।
सुन्दर कविता...
Sundar kavita----.
क्या फिर यात्रा रुकी ....
चिंतन को विवश कर दिया भाई अपनें |
Pahli baar aayi hun aapke blogpe...aur bahut prabhavit hun!
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