Tuesday, October 6, 2009

हां सर्वस्व मेरे.......!

सर्वस्व मेरे !
तम छंटा..
हूं मैं तुम्हारे
आलोक में ।

क्या है ...
निजशेष
उठा लिया है अपनी गोद में
तुम्हारी दृष्टि का सावन
मुसलाधार है या मद्धम
ज्ञात अब क्या बचा है ।

तुम्हारे आशीर्वचनों ने
समूचे दुःखों को हर लिया ...!

हां सर्वस्व मेरे.....!

10 comments:

संगीता पुरी said...

विश्‍वास में ही बडी शक्ति है .. आशीर्वचन तो मिलना ही है .. सारे दुख समाप्‍त हो जाते हैं .. बहुत सुंदर रचना !!

समयचक्र said...

बहुत सुन्दर भाव .

Mishra Pankaj said...

क्या है ...
निजशेष
उठा लिया है अपनी गोद में
तुम्हारी दृष्टि का सावन
मुसलाधार है या मद्धम
ज्ञात अब क्या बचा है ।
हेमंत भाई नमस्कार , अच्छा लिखा है आपने

विनोद कुमार पांडेय said...

बढ़िया रचना....बधाई!!!

शरद कोकास said...

कही कही छायावाद के युग मे पहुंचने का आभास होता है

Himanshu Pandey said...

यह क्या हो रहा है ? हम दोनों छायावादी क्यों हो रहे हैं ? कुछ प्रगतिवादी बनो न ! मैं तो होने से रहा-तुमसे ही आशा है ।

वाणी गीत said...

आशीर्वचन दुःख हरते रहे ...बहुत शुभकामनायें ..!!

vandana gupta said...

prabhu prem ko samarpit rachna.........bahut hi sundar bhav.

रचना दीक्षित said...

तुम्हारी दृष्टि का सावन
मुसलाधार है या मध्यम
अच्छी पंक्तियाँ
आभार

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुंदर --इस खुलेपन की जितनी भी तारीफ़ करें कम है, दोस्त।

dher sari subh kamnaye
happy diwali

from sanjay bhaskar
haryana
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