प्रत्याशित सफलता का न होना
नीयति पर ठीकरा कसना क्यों हो...?
कहीं यह पलायन तो नहीं...!
इसकी समीक्षा
ठंडे बस्ते में डाल देती है
गर्म लोहे के ताप को
असफलता से प्राप्त
आग की ज्वाला
यदि सच्ची है
फिर
तपा कर स्वयं को
कुन्दन न बना देगी....!
बिलकुल ! असफलता से क्या घबराना ! चींटी की कहानी याद है न मित्र ! बहुत गहरी बातें बता जाती है किसी विशेष क्षण की असफलता ! कुन्दन ही बनाती है । प्रवृत्ति सही है । चरैवेति...चरैवेति..!
11 comments:
बिलकुल ! असफलता से क्या घबराना ! चींटी की कहानी याद है न मित्र !
बहुत गहरी बातें बता जाती है किसी विशेष क्षण की असफलता ! कुन्दन ही बनाती है । प्रवृत्ति सही है । चरैवेति...चरैवेति..!
सच है असफ़लता सफ़लता की तरफ़ बढता हुआ पहला कदम है , सफ़लता का वास्त्विक मूल्य भी तभी पता चलता है जब असफ़लता का स्वाद चखा हो ,
सही बात है हेमंत जी। इस कविता के जरिए आपने बहुत ही प्रेरणादायक और गहरी बात कही है। आभार।
सम्भवत: आप 'नियति' कहना चाह रहे थे, पहले ही दीर्घ हो गए। नीयत की संगति तो नहीं बैठती !
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गर्म लोहे के ताप को
असफलता से प्राप्त
आग की ज्वाला
यदि सच्ची है
फिर
तपा कर स्वयं को
कुन्दन न बना देगी....!
इसे रीफ्रेम कीजिए बन्धु ! निखार की दरकार है। शानदारी पर थोड़ी सान चढ़ा दीजिए।
असफलता की आंच तपा कर कुंदन बना तो देती है ...सफलता का स्वाद दुगुना तभी होता है जब असफलता को चख चुके हो ...
आशा का सन्देश है आपकी कविता ...!!
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
सुंदर रचना।
आग की ज्वाला
यदि सच्ची है
फिर
तपा कर स्वयं को
कुन्दन न बना देगी... इन पंक्तियों में तो आपने जीवन का एक बड़ा दर्शन बता दिया है---सुन्दर ।
जीवन की एक असफलता का नाम जीवन की असफलता नहीं.
पता नहीं बनायेगी कि नहीं .........हो सकता है यदि आप कह रहे हैं तो ......
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