बाबूजी की बेटियां
अब
पापा की बेटियां हैं
बेड़ियां
गये जमाने की है बात
नहीं सिमटा है जीवन
केवल चूल्हे- चौके,राशन-पानी तक
लड़कों से कम नहीं है उनकी उड़ाने
वह भी
बैग टांगे
सायकिल से स्कूटी से बसों से
करती हैं यात्रायें
बेहतर जीवन
जीना
अब
कपोल कल्पना नहीं.....।
3 comments:
भौतिक सुविधायें और कुछ भौतिक स्वंत्रतायें स्त्री को बंधन-मुक्त नहीं कर सकती । जरूरी है आत्मबल । मनोदशा का स्वातंत्र्य चाहिये ।
कविता बेहतर है ।आभार ।
bahut hi achha likha hai.
behatarin ......badhaaee
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