बगिया बहुत उदास है
कैसे खिलेंगी कलियां
नहीं होगा भवरों का गुंजन
दूर- दूर तक
हरियाली रो रही है
क्या मुझे अब लोग
वाल पेपर,थीम और
नन्हीं तूलिकाओं की से
बनी चित्रावलिओं में ही देखेंगे।
कहीं ऐसा न हो जाय
जीवन और प्रकृति का सामंजस्य
भौतिक सुख सुविधाओं के बीच
असहाय सा हो जाय।
2 comments:
कहीं ऐसा न हो जाय
जीवन और प्रकृति का सामंजस्य
भौतिक सुख सुविधाओं के बीच
असहाय सा हो जाय।
पर्यावरण क सामंजस्य के लिये सचेत करती सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई
सुंदर भाव से सजी कविता...
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