Saturday, August 22, 2009

बगिया बहुत उदास है


बगिया बहुत उदास है
कैसे खिलेंगी कलियां
नहीं होगा भवरों का गुंजन
दूर- दूर तक
हरियाली रो रही है
क्या मुझे अब लोग
वाल पेपर,थीम और
नन्हीं तूलिकाओं की से
बनी चित्रावलिओं में ही देखेंगे।

कहीं ऐसा न हो जाय
जीवन और प्रकृति का सामंजस्य
भौतिक सुख सुविधाओं के बीच
असहाय सा हो जाय।

2 comments:

निर्मला कपिला said...

कहीं ऐसा न हो जाय
जीवन और प्रकृति का सामंजस्य
भौतिक सुख सुविधाओं के बीच
असहाय सा हो जाय।
पर्यावरण क सामंजस्य के लिये सचेत करती सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई

अर्चना तिवारी said...

सुंदर भाव से सजी कविता...