एक बालक देखता है
दुनिया का बावलापन
लोग कैसे आगे बढ़ रहे हैं
इसका प्रश्न उसके जेहन में है
जिसे खोजता फिरता है वह
अपने आस-पास
अपने को भ्रम में पाता है
जैसे जैसे बडा़ होता है
उसका संशय और भी बड़ा हो जाता है
जब तक वह बालक था
मस्त था
आज
वह बड़ा हो गया है
चुनौतियां है सामने
बढ़ रहा है चौराहे की ओर
जहां से खुलते हैं अनेक द्वार
सोचता है
चुनुंगा उसे ही
जो कर दे सफल
पर
यह रास्ता सही है
यह कहना
आज
कितना सही है........।
8 comments:
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति.. हैपी ब्लॉगिंग
bahut hi sundar hai manobhaw jise padhkar achchha laga
जीवन की अनवरत यात्रा में संशय, विकल्प, असहमति - न जाने कितने पड़ाव केवल इसलिये ही आते हैं कि जीवन की यह सात्विक यात्रा क्षण भर के लिये ठहर जाँय ।
बहुत कुछ स्वाभाविक है- उसकी अभिव्यक्ति ।
Hemant Ji,
bachche ke manobhavon ko lekar achchhee rachna hai...badhai.
'पर
यह रास्ता सही है
यह कहना
आज
कितना सही है........। '
-जीवन में जिसने सही रास्ते को पहचान लिया वही सफल हुआ.लेकिन सबसे बड़ी चुनौती इस रास्ते को पहचानने की है.
गहरे भावों के मंथन स्वरूप इस रचना का जन्म हुआ है.. निश्चय ही बिना चले यह कह पाना कौन सी राह उचित है कौन सी अनुचित अत्यन्त कठिन है.. समय ही सही और गलत का निर्णय करता है
आज के दौर में सही रास्ता तलाश करना बहुत ही मुश्किल है.................. चुनौतियां तो हैं ही बहुत .............. लाजवाब लिखा है आपने
good
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