Friday, August 28, 2009

धरती का कलेजा फट रहा है

धरती का कलेजा फट रहा है
देख कर चिटकन
धरती का
मानो ऐसा लगता है
इतनी विशाल धरती
जिसका तीन भाग पानी है
उसका पानी पानी के लिए तरसना
गला भर आता है
पर्यावरण असन्तुलन के लिए जिम्मेदार कौन
जितना दोहन हम करते हैं
क्या उसके प्रति वफादार हैं
अन्न-पानी -हवा
जब इसका दायरा सिमटेगा
तो इस जनसंख्या का क्या होगा
कभी अलनिनो कभी कुछ को
कब तक जिम्मेदार ठहराया जा सकता है
नहीं हो रही खेती अच्छी
तब महगांई और भागेगी
आम जनता और धरती के कलेजे में
जमीन आसमान का अन्तर है
जब धरती का यह हाल है
जन जीवन का क्या होगा............?

2 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत बेहतरीन!!

निर्मला कपिला said...

बहुत बडिया अभिव्यक्ति आभार्