सुबह से शाम तक बैठा रहा
तेरे इन्त्जार में
तुम हो
कि आये और चल दिये ..।
मुद्दत बाद
तुम्हारा दीदार हुआ
चलो अच्छा हुआ
एक बार हुआ...
हम मुसाफिर हैं
ये राह हो न हो
रहगुजर तो है
साथ चलते रहेंगे...।
तुम्हारा खयाल आया
तो यादों के साथ हो लिए
साथ तुम तो न थे
तुम्हारी याद ही सही..।
हम तो आये थे
कुर्बान होने को
यहां देखा तो
तुम विदा हो रही थी ...।
5 comments:
दूसरा तो कहर ढा रहा है मित्र !
मुक्तक का आइडिया बुरा नहीं ! यूँ ही निकल गये थे न !
सुन्दर!
बहुत उम्दा!!
मुद्दत बाद
तुम्हारा दीदार हुआ
चलो अच्छा हुआ
एक बार हुआ...
waah behtarin
मुद्दत बाद तुम्हारा दीदार हुआ अच्छा हुआ एक बार हुआ ...एक मुलाकात में ही इतने प्रताडित हैं ..?? हा हा
बेहतरीन भाव लिए हुए मुक्तक ..
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