बचपन में गुरु जी ने
रटा डाला--
बेटा !
सूरज पूरब में उगता है
पश्चिम में अस्त होता है
मैने भी देखा
हां यह सच है ।
समय अपने गति से आगे बढ़ा
बड़ा हुआ मैं
सोचने समझने का स्तर
समानान्तर बढ़ता गया ।
विज्ञान और मानविकी के अध्ययन से
कुछ और ही बातें सामने आयी
मन अन्तर्द्वन्द से भर उठा -
अरे ! यह क्या ।
सूर्य कभी अस्त होता है क्या
ये हमारी पृथ्वी की गतियां हैं
जिससे उसके उदय और अस्त होने का भाव
निश्चित हो जाता है जेहन में ।
जिसने हमें ककहरा सिखाया
उस गुरू जी के प्रति
श्रद्धा भाव के सिवा
शंका भाव का प्रश्न ही नहीं
शैक्षिक विरासत की नींव
उन्होंने ही रखी तो थी....।
5 comments:
कह तो अजीब रहे हो, पर यहाँ मस्तिष्क की कारगुजारी है । नये ज्ञान की रश्मियाँ अजीब-सा उजाला भरती हैं । प्रज्ञा खुली तो ठीक, न खुली तो मस्तिष्क तो थाल सजाये खड़ा ही है - अनेकों संदेह के नैवेद्य के लिये ।
गुरु के प्रति श्रद्धावनत रहें । आभार ।
और उसी नींव पर तनी इमारत में ये विचार पके हैं..जय हो!!
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
कृप्या अपने किसी मित्र या परिवार के सदस्य का एक नया हिन्दी चिट्ठा शुरू करवा कर इस दिवस विशेष पर हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार का संकल्प लिजिये.
जय हिन्दी!
आपका हिन्दी में लिखने का प्रयास आने वाली पीढ़ी के लिए अनुकरणीय उदाहरण है. आपके इस प्रयास के लिए आप साधुवाद के हकदार हैं.
आपको हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.
नीं पक्की हो तो इमारत की आयू निश्चित ही बढती है बहुत सुन्दर रचना है शुभकामनायें
सुंदर रचना .. हैपी ब्लॉगिंग
Post a Comment