बावरा मन
बड़ा भोला है
नहीं रखता याद
उसके साथ क्या घटित हुआ...।
नहीं पड़ा इसके पचड़े में
संभव है दूरदर्शी हो
दुनियां के मकड़जाल का क्या पता इसे
अतीत का सुख-दुख
और वर्तमान में सहभागी बन कर
सच को बार- बार परेशान देखकर भी
अपना धैर्य नहीं खोता
किसी की निष्ठुरता पर
बयानबाजी नहीं करता |
दूरदर्शिता की पराकाष्ठा
अपने समस्त अर्थों में विद्यमान है यहां
सारे चिन्तन से परे
अजीब दुनियां बसती है......!
चुक जाते हैं गणित के भेद
पारदर्शिता - अपारदर्शिता के बीच.......!
8 comments:
वाह!! क्या बात है.
आपको एक कवि की भूमिका में देखना अच्छा लग रहा है।
sahi bhav hai aapke.narayan narayan
बावरा मन भोला भी दूरदर्शी भी..अजीब दुविधा है..पारदर्शिता और अपारदर्शिता के बीच ..
बहुत बढ़िया..शुभ हो..!!
वाणी जी की बात पर ध्यान दिया जाना चाहिये । दुविधा तो है ही । आभार ।
खूबसूरती से बयां की गई दुविधा.. हैपी ब्लॉगिंग
सच को बार- बार परेशान देखकर भी
अपना धैर्य नहीं खोता
किसी की निष्ठुरता पर
बयानबाजी नहीं करता |
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लगता नहीं कि सुखी जीवन के लिये मेमोरी कम होना बहुत फायदेमन्द है! चिन्ताओं/दुविधाओं के लिये घोंसले ही नहीं मिलते!
चुक जाते हैं गणित के भेद
पारदर्शिता - अपारदर्शिता के बीच.......!
SUNDAR PRAYOG HAI GANIT AUR KAVITA MEIN SAAMJASY BAITHAATA .........
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