कलियुग के गुण धर्म का
एक नया संस्करण सामने है
प्रकृति का ऐसा अनगढ़
जिसे कभी प्राकृतिक सुख न मिला
जीवन के रंगो को जाना पहचाना नहीं
आज ऐसी कुर्सी पर है
जहां कभी विलक्षण प्रतिभा के धनी
सुशोभित हुआ करते थे
दिया था उन्होंने कितनों को अभयदान
उसी कुर्सी पर बैठ कर
यह
अपनी दोहरी भूमिका निभा रहा है
खुद को सच का चोंगा पहना कर
घात-प्रतिघात के निर्णय निर्माण में
दर-ब-दर तूलिकाएं तोड़ रहा है
खुद जिसके कर्म का कौमार्य
उसे चिढ़ा रहा हो
उससे न्याय की कल्पना
जो आदर्शोन्मुख हो
शायद अनुचित है
उसके न्याय में सिवाय स्वांग के
और क्या होगा
ऐसे फैसलों को अनुभव कर
कुर्सी व कलम की रूह हिल गयी होगी
तरस आया होगा उसे अपने आप पर ।
न सह सके ऐसे व्यक्तित्व का बोझ वह
न देख सके अपने इतिहास को कलंकित
शायद इसी लिए नियति के खेल ने
कुर्सी को कबाड़खाने भेज दिया
उसपर पुराने होने का आरोप लगाकर........!
आज उसका स्थान नयी "चेयर" ने ले लिया था ।
9 comments:
अच्छे विचारों के साथ आपने सही बात का ज़िक्र किया है! बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! इस बेहतरीन और शानदार रचना के लिए बधाई!
कविता तो झकास है मित्र । कहाँ कहाँ के विचार-तन्तु टकरा गये ! उलझे नहीं लेकिन, एक नया स्वर उत्पन्न हो गया ।
धन्यवाद ।
खुद जिसके कर्म का कौमार्य
उसे चिढ़ा रहा हो
उससे न्याय की कल्पना
जो आदर्शोन्मुख हो
शायद अनुचित है
उसके न्याय में सिवाय स्वांग के
और क्या होगा
ऐसे फैसलों को अनुभव कर
कुर्सी व कलम की रूह हिल गयी होगी...
गहरे भावार्थ लिए कुर्सी की हकीकत बयां करती कविता...बहुत बढ़िया ..!!
लेखनी प्रभावित करती है.
कुर्सी व कलम की रूह हिल गयी होगी
तरस आया होगा उसे अपने आप पर ।
बहुत खूब लिखा आपने.. हैपी ब्लॉगिंग
आपने पता नहीं किस भाव से लिखा, पर पढ़ कर मैने अपनी कुर्सी का मुआयना कर लिया।
अभी यह कुर्सी ही है - चेयर न बनी!
खुद जिसके कर्म का कौमार्य
उसे चिढ़ा रहा हो
उससे न्याय की कल्पना
जो आदर्शोन्मुख हो
शायद अनुचित है
उसके न्याय में सिवाय स्वांग के
और क्या होगा
ऐसे फैसलों को अनुभव कर
कुर्सी व कलम की रूह हिल गयी होगी...
बहुत ही खूबसूरत अंदाज़-ए-बयां आपका ..
कविता में आपका शब्द सामर्थ्य और आपके मनोभाव स्पष्ट रूप से दृष्टिगत हैं
बहुत सुन्दर...
परन्तु 'कुर्सी' के 'चेयर' बनने से क्या होता है मुखौटा नया है चेहरा तो वही पुराना है.....
अपने भावों के शब्दों में अच्छी तरह उकेरित किया है
KHOOBSOORAT RACHNA HAI .... SAAMYIK ..
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