दुर्घटनाए
जानलेवा न हों
ढाढस बाधा जाना ...!
बात समाझ में आती है ।
हाईवे पर छः घण्टे के अन्दर
छः छः मौतों ने
हिला कर रख दिया
सड़क पर वही चल रहे होते हैं
जिनसे न जाने कितनों के
अरमान जुड़े होते हैं ।
किसी मां ने लगाया होगा तिलक
जा बेटा ! तुझे आज अवश्य मिलेगी सफलता
बगल में परदे से झांक रही पत्नी
कितने अरमानों से की होगी मंगल कामना
हे ईश्वर ! अब हमारा चमन भी खिल उठे
चौखट पर खेल रही बिटिया ने देखा होगा.....!
अबकी पापा रेलगाड़ी जरूर ला देंगे
खूब चलाउंगी मै
कौन कहे जा करके
मां से !
पत्नी से ! और
उस नन्हीं सी बिटिया से ।
और कैसे ?
कि तुम्हारा ........!
अनायास, असमय, अकारण
हंसी अच्छी नहीं लगती....!
फिर यह मौत....?
8 comments:
मस्त लिखा है आपने हेमंत भाई
कौन कहे जा करके
मां से !
पत्नी से ! और
उस नन्हीं सी बिटिया से ।
और कैसे ?
कि तुम्हारा ........!
अनायास, असमय, अकारण
हंसी अच्छी नहीं लगती....!
फिर यह मौत....?
बिलकुल सही लिखा है मार्मिक रचना बधाई
इस पंक्ति का प्रभाव महसूस कर रहा हूँ -
"सड़क पर वही चल रहे होते हैं
जिनसे न जाने कितनों के
अरमान जुड़े होते हैं ।
और कविता के अंत में जो वैपरीत्य उघाड़ कर रखा है, वह भी कितना विचित्र है ? समझ से पर, विचार से दूर ।
भाई वाह क्या बात है, दिल को छु गयी आपकी ये रचना। बहुत-बहुत बधाई
अति मार्मिक!!
घटना बहुत अफसोसनाक और अभिव्यक्ति मार्मिक !
मर्मस्पर्शी रचना ..!!
जीवन को उसके हर रूप में देख्नना पड़ता है-मृत्यु भी उसका एक घटक है- संवेदना अच्छी है।
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