बादल मंडरा रहे हैं
खुशियों के
जाने कब बरस जांय
कर दें सराबोर
इस पूरे आभामंडल को ।
रोम रोम हो जाय
पुलकित
तुम्हारे आने की
तमन्नाओं का सफर
जल्द ही रंग लायेगा ।
ऐसा लगता है
मंजिल अपनी ओर
सायास ही
रंग बिरंगे स्वप्न लिये
आकर्षित कर रही है ।
तुम साथ हो तभी
सारी खुशियों की रवानी है
आ जाओ जब
सब कुछ बेहतर सा दिखने लगता है-
सुबह खिली खिली सी..
शाम रंगीन और भी बहुत कुछ..!
साथ ही मूल्यांकन करता हूं जब
हर रात सोने से पहले
दिन भर का
हर क्षण मूल्यवान सा दिखता है ।
10 comments:
साथ ही मूल्यांकन करता हूं जब
हर रात सोने से पहले
दिन भर का
हर क्षण मूल्यवान सा दिखता है ।
bahut sunder.
बहुत उम्दा भाव!! वाह!
मानना पड़ेगा आप को लेख(अक्षरशः)के साथ कविता(कलरव)भी आप अच्छा करतें हैं-कविता की हर पंक्ति अपनी पूरी शिद्दत के साथ उपस्थित है।
अंत ने प्रभावित किया । लगा ही नहीं शुरु में कि कविता का ऐसा अदभुत अन्त होगा । समाप्ति ने अनेको प्रारंभ दे दिये विचारों को !
आभार ।
बेहतरीन भाव...सुंदर रचना..बधाई!!
साथ ही मूल्यांकन करता हूं जब
हर रात सोने से पहले
दिन भर का
हर क्षण मूल्यवान सा दिखता है ।
behad khubsurat nazm,aafrin
सुन्दर भावों से सजी यह रचना बहुत पसंद आई शुक्रिया
.....a tacit initiation of some kind of exilirating newness is seeming to engross your inner textures of existance.....these are just sprouts.....nice !
......perhaps ....the clouds of mirth dithering not only in external sky but also in your inner firmament.!!!!
सुन्दर! जरूर बरसें खुशियों और स्नेह के बादल!
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