Friday, September 25, 2009

बादल मंडरा रहे हैं...!

बादल मंडरा रहे हैं
खुशियों के
जाने कब बरस जांय
कर दें सराबोर
इस पूरे आभामंडल को ।

रोम रोम हो जाय
पुलकित
तुम्हारे आने की
तमन्नाओं का सफर
जल्द ही रंग लायेगा ।

ऐसा लगता है
मंजिल अपनी ओर
सायास ही
रंग बिरंगे स्वप्न लिये
आकर्षित कर रही है ।

तुम साथ हो तभी
सारी खुशियों की रवानी है
आ जाओ जब
सब कुछ बेहतर सा दिखने लगता है-
सुबह खिली खिली सी..
शाम रंगीन और भी बहुत कुछ..!

साथ ही मूल्यांकन करता हूं जब
हर रात सोने से पहले
दिन भर का
हर क्षण मूल्यवान सा दिखता है ।

10 comments:

Asha Joglekar said...

साथ ही मूल्यांकन करता हूं जब
हर रात सोने से पहले
दिन भर का
हर क्षण मूल्यवान सा दिखता है ।
bahut sunder.

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा भाव!! वाह!

Jai Prakash Chaurasia said...

मानना पड़ेगा आप को लेख(अक्षरशः)के साथ कविता(कलरव)भी आप अच्छा करतें हैं-कविता की हर पंक्ति अपनी पूरी शिद्दत के साथ उपस्थित है।

Himanshu Pandey said...

अंत ने प्रभावित किया । लगा ही नहीं शुरु में कि कविता का ऐसा अदभुत अन्त होगा । समाप्ति ने अनेको प्रारंभ दे दिये विचारों को !
आभार ।

विनोद कुमार पांडेय said...

बेहतरीन भाव...सुंदर रचना..बधाई!!

mehek said...

साथ ही मूल्यांकन करता हूं जब
हर रात सोने से पहले
दिन भर का
हर क्षण मूल्यवान सा दिखता है ।

behad khubsurat nazm,aafrin

रंजू भाटिया said...

सुन्दर भावों से सजी यह रचना बहुत पसंद आई शुक्रिया

अभिषेक आर्जव said...

.....a tacit initiation of some kind of exilirating newness is seeming to engross your inner textures of existance.....these are just sprouts.....nice !

अभिषेक आर्जव said...

......perhaps ....the clouds of mirth dithering not only in external sky but also in your inner firmament.!!!!

Gyan Dutt Pandey said...

सुन्दर! जरूर बरसें खुशियों और स्नेह के बादल!