Tuesday, September 1, 2009

समय भी अब धीरे-धीरे चलने लगा

कब से देखता रहा तुम्हारी राह
तुम ना आये
तुम्हारा न आना
समय की गति को भी परिवर्तित कर दिया ।

समय भी अब धीरे-धीरे चलने लगा
आज तुम न सही
तुम्हारी यादें तो हैं
बीते हुए कल का
जब भी पलटता हूं
एक-एक पन्ना
तुम्हारे साथ जिया एक-एक पल ।

हरा हो जाता है क्षण-क्षण
और फिर  खो जाता हूं
उस पल में
कुछ भी याद नहीं रहता
कि और भी कुछ करना है।

तुमने दिया था एक सम्बल
हमारे स्वत्व को
और पुन: लौटा मुझमें आत्मविश्वास ।

5 comments:

Himanshu Pandey said...

सब कुछ बेहतर हो रहा है । कविता प्रभावित करती है । धन्यवाद ।

श्यामल सुमन said...

अच्छे भाव की रचना। पढ़ना अच्छा लगा आपको।

वाणी गीत said...

यादों को संबल बनाये ..आत्मविश्वास फिर से लौट आएगा ..!!

दिगम्बर नासवा said...

बीते हुए कल का
जब भी पलटता हूं
एक-एक पन्ना
तुम्हारे साथ जिया एक-एक पल .......

UN YAADON MEIN HI TO JEEVAN SAMAAYA HOTA HAI .....
MAN KO CHOO KAR GUZAR GAYEE AAPKI YEH RACNA ...

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुंदर --इस खुलेपन की जितनी भी तारीफ़ करें कम है, दोस्त।

dher sari subh kamnaye
happy diwali

from sanjay bhaskar
haryana
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