Sunday, September 6, 2009

अभी जीना है...!

मुझे अभी जीना है कविता के लिए नहीं
कुछ करने के लिए कि मेरी संतान  मौत कुत्ते की  न मरे
मै आत्महत्या के पक्ष में नहीं हूं तो इसलिए
कि मुझसे पहले मरें वे जो कि
मेरी तरह मरने को बाध्य हैं
कुछ नहीं करता हूं मृत्यु के भय से मैं
सिर्फ अपमान से उनको बचाता हूं
जिन्हें मृत्यु आकर ले जायगी
दबे पांव आहट को सुनता हूं
और उसे शोर बनने नहीं देता हूं
हां मैं कुछ करता हूं जिसका
उपचार से कोई संबंध नहीं


                                     (‘रघुवीर सहाय‘ की कविता)

7 comments:

Himanshu Pandey said...

रघुवीर जी की कविता की प्रस्तुति का आभार ।

Udan Tashtari said...

रघुवीर सहाय जी रचना पढ़वाने के लिए आभार!

वाणी गीत said...

बेहतरीन कविता प्रस्तुत करने का आभार और शुभकामनायें..!!

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

रघुवीर जी की कविताएँ मुझे हमेशा से जटिल लगती रही हैं, जाने क्यों? सम्भवत: यही उनकी शक्ति भी है।

पूनम श्रीवास्तव said...

Raghuveer ji kii itanee dhardar kavita padhvane ke liye shubhkamnayen.
Poonam

दिगम्बर नासवा said...

RAGUVEER JI KI SAARTKAH RACHNA ........ SHUKRIYA

Gyan Dutt Pandey said...

अरे बन्धु जीना है अमरत्व के लिये! यह समझने के लिये कि कोई मार नहीं सकता हमें!