Friday, September 18, 2009

विकलांगता का होना....!

विकलांगता का होना
किसी अभिशाप से कम नहीं
उसके भेद
चाहे जिस रूप में हो
दुखदायी ही होते हैं ।

शारीरिक विकलांगता हो
वह भी आंशिक
बात उतनी नहीं बिगड़ पाती
जितनी पूर्ण से होती है ।

ऐसे में
कुछ कर गु्जरने का साहस यदि हो भी
अनेक कष्टों को सहना होता है उसे
साथ ही उपेक्षा भी ।

विकलांगता जब मानसिक हो
स्थिति और भी खतरनाक हो जाती है
शारीरिक विकलांगता में कुछ संभव भी है
और इसमें चेतन - अवचेन का कोई भेद नहीं ।

वाह रे ! नियति
अजीब है यह खेल.....।
लोग इसे पागलपन क्यों समझते हैं
अभिशप्त होने के पीछे
उसका क्या दोष....?

5 comments:

वाणी गीत said...

शारीरिक विकलांक को तो फिर भी सहानुभूति प्राप्त हो जाती है
मानसिक विकलांगों को पागल कहकर मजाक उडाया जाता है..वास्तविक स्थिति पेश की है आपने कविता में ..
शुभकामनायें ..!!

Himanshu Pandey said...

बुद्धि-विवेक से रहित हो जाना ही अपने आप में एक अभिशप्त जीवन की शुरुआत है । संवेदित करती पोस्ट । आभार ।

विनोद कुमार पांडेय said...

हेमंत जी,

बहुत खूबसूरत भाव लिए हुए आपकी कविता दिल छू ती है..
बधाई..

Gyan Dutt Pandey said...

मानसिक विकलांगता को इस देश में सही रूप में ट्रीट नहीं किया जाता। मसलन ब्रेन इंजरी के कई मामलों में लोग ओझाई के चक्कर में पड़ते हैं। कई बार डाक्टर ठीक से डायग्नोइज नहीं करते।
आप ने जाने किस भाव से वशीभूत लिखी है यह पोस्ट पर मेरे सामने तो अनेक बीमार चेहरे आ रहे हैं!

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

विकलांगता जब मानसिक हो
स्थिति और भी खतरनाक हो जाती है
शारीरिक विकलांगता में कुछ संभव भी है
और इसमें चेतन - अवचेन का कोई भेद नहीं ।

Vah Hemant ji,
bahut hee saragarbhit kavita likhee hai apane.badhai.
Hemantkumar