Monday, September 21, 2009

झंकृत स्वर....!

झंकृत स्वर
गुंजायमान हो उठा
एक बार फिर
लम्बे अन्तराल के बाद ।

तुम ठीक उसी तरह आज भी दिखे थे
सादगी के आभूषण
आज भी सुशोभित हो रहे थे
आत्मविश्वास से भरा देख
प्रमुदित हो रहा था मैं ।

तुम्हारा झल्लाना
अब
मधुर मुस्कान में
तब्दील चुका था...!

शारदीय नवरात्रि में
संयोगात अलग - अलग पंक्ति में
साथ ही आशीर्वाद जैसे
वर्षों से चली आ रही परंपरा
सी हो गयी हो...!

ठीक उसी सिद्धान्त की तरह
जैसे-
"आपतित किरण, परावर्तित किरण और अभिलंब
तीनो एक ही बिन्दु पर होते हैं ।"

समय की गति ने रफ्तार ली
लेकिन
हम दोनों वैसे ही हैं
जैसे होते हैं नदी के किनारे
जिन्हें नहीं होना साथ साथ
बस लहरें हैं प्रेम की
जिससे होता है भावास्पर्श
हमारा - तुम्हारा...!

11 comments:

संगीता पुरी said...

समय की गति ने रफ्तार ली
लेकिन
हम दोनों वैसे ही हैं
जैसे होते हैं नदी के किनारे
जिन्हें नहीं होना साथ साथ
बस लहरें हैं प्रेम की
जिससे होता है भावास्पर्श
हमारा - तुम्हारा...!
बहुत सुंदर भाव .. अच्‍छी रचना !!

Mithilesh dubey said...

बहुत सुंदर भाव। लाजवाब प्रस्तुति। बधाई

Ashish Khandelwal said...

बहुत खूब.. झंकृत स्वर खूबसूरती से गुंजायमान हो रहा है.. हैपी ब्लॉगिंग

विनोद कुमार पांडेय said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति बधाई!!!

Anonymous said...

bahut sundar prastuti...

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Himanshu Pandey said...

मुझे कुछ नहीं दिखा इस कविता में - न सिद्धान्त, न विचार ।

इतना दिखा केवल कि,
"बस लहरें हैं प्रेम की
जिससे होता है भावास्पर्श
हमारा - तुम्हारा...!

neera said...

हम दोनों वैसे ही हैं
जैसे होते हैं नदी के किनारे
जिन्हें नहीं होना साथ साथ
बस लहरें हैं प्रेम की
जिससे होता है भावास्पर्श
हमारा - तुम्हारा...!

बहूत सुंदर ढंग से कही है दिल की बात!

वाणी गीत said...

जैसे होते हैं नदी के किनारे
जिन्हें नहीं होना साथ साथ
बस लहरें हैं प्रेम की
वैसे ही जैसे ..अपना जीवन रेल की पटरी ...साथ रहे और मिल न पाए ..(फ़िल्मी गीत )

Arvind Mishra said...

सुन्दर सुघड़ कविता !

दिगम्बर नासवा said...

ठीक उसी सिद्धान्त की तरह
जैसे-
"आपतित किरण, परावर्तित किरण और अभिलंब
तीनो एक ही बिन्दु पर होते हैं ।"....
SUNDAR PRAYOG HAI IS RACHNA MEIN .... ACHEE RACHNA ...

Gyan Dutt Pandey said...

सुन्दर, झल्लाने में भी एक झंकार-संगीत है। अनुभव करने की बात है!